शुक्रवार 20 नवंबर 2020 को लखनऊ में की गई एक समीक्षा बैठक के दौरान मुख्‍यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिलाधिकारियों और पुलिस कप्तानों सहित सभी उच्च अधिकारियों को स्पष्‍ट आदेश एवं निर्देश दिए कि उन्‍हें अपने सरकारी मोबाइल (सीयूजी) नम्बर पर आने वाली हर कॉल खुद रिसीव करनी होगी। साथ ही सीयूजी नंबरों के जरिए सामने आने वाली जनसमस्‍याओं को गंभीरता से लेना होगा और उनका समाधान करना होगा। 
मुख्‍यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने साफ-साफ कहा कि डीएम और पुलिस कप्तान सहित अन्य सभी अधिकारी अपने सीयूजी नम्बर पर आने वाली हर फोन कॉल का जवाब भी जरूर दें। यह आदेश तत्काल प्रभाव से अमल में लाया जाए। इसे जांचने के लिए अगले एक सप्ताह में मुख्यमंत्री कार्यालय से औचक फोन कर अधिकारियों की कार्यशैली परखी जाएगी ताकि आदेश की अवहेलना करने वाले अधिकारियों के खिलाफ आवश्‍यक एक्शन लिया जा सके। सीएम योगी ने गैर जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ सख्‍त कार्रवाई करने के लिए उच्चाधिकारियों को भी निर्देशित किया। 
जनहित में दिए गए इन आदेश-निर्देशों के अनुपालन की सत्यता परखने के लिए योगी सरकार ने लगभग चार महीने बाद 15 मार्च 2021 को तमाम बड़े अधिकारियों से उनके सीयूजी नंबरों पर संपर्क साधने का प्रयास किया किंतु इनमें से 25 जिलाधिकारियों तथा 4 कमिश्नरों ने अपने सीयूजी नंबर रिसीव करने की जहमत नहीं उठाई। अधिकारियों की इस हरकत के लिए प्रदेश के नियुक्ति एवं कार्मिक विभाग ने वाराणसी, प्रयागराज, अयोध्‍या तथा बरेली के मंडलायुक्तों से जवाब तलब भी किया। 
इनके अतिरिक्त गौतमबुद्ध नगर (नोएडा), गाजियाबाद, बदायूं, अलीगढ़, कन्नौज, संत कबीरनगर, सिद्धार्थनगर, गोरखपुर, फिरोजाबाद, हापुड़, अमरोहा, पीलीभीत, बलरामपुर, गोंडा, जालौन, कुशीनगर, औरैया, कानपुर देहात, झांसी, मऊ तथा आजमगढ़ के जिलधिकारियों को भी कारण बताओ नोटिस जारी किए गए किंतु इसके तीन साल बाद भी स्‍थिति जस की तस है। 
2017 में पूर्ण बहुमत के साथ यूपी के सीएम बने योगी आदित्यनाथ ने 2022 में एकबार फिर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। अब उस सरकार को बने भी दो साल से अधिक का समय बीत चुका है किंतु अधिकारियों के रवैये में कोई परिवर्तन नजर नहीं आ रहा। 
अधिकांश अधिकारी आज भी न तो अपने सीयूजी नंबर रिसीव करते हैं और न किसी को कोई जवाब देते हैं। ऐसे अधिकारियों की भी कमी नहीं हैं जिनके सीयूजी नंबर उनके अधीनस्थ उठाते हैं और फोन करने वाले का 'स्टेटस' देखकर जवाब देते हैं। 
जनसामान्‍य की तो किसी भी समस्या को शायद ही कोई अधिकारी गंभीरता से लेता हो अन्यथा ज्‍यादातर अधिकारी और उनके अधीनस्‍थ अनजान नंबर से आए कॉल को रिसीव करना तक जरूरी नहीं समझते। 
इसके अलावा हर सरकारी अधिकारी के सीयूजी नंबर पर WhatsApp चालू होना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी है उसे 'सीन' करना यानी देखना तथा देखकर आवश्‍यकता अनुसार उसका जवाब देना और समस्‍या का यथासंभव समाधान करना। लेकिन तमाम अधिकारी ऐसा नहीं करते। 
उन्‍होंने अपने WhatsApp पर इस तरह की सेटिंग की हुई है कि प्रथम तो वो उन तक संदेश पहुंचते ही नहीं हैं, और यदि पहुंच भी जाएं तो भेजने वाले को पता नहीं लगता कि उसका मैसेज देखा भी है या नहीं क्योंकि उस सेटिंग के बाद वहां 'ब्‍लू टिक' शो नहीं करता। सिर्फ मैसेज पहुंचने के दो टिक शो होते हैं।    
अगर बात करें राजनीतिक एवं धार्मिक दृष्‍टि से महत्वपूर्ण मथुरा जैसे जिले की तो उसका हाल भी दूसरे जिले से कुछ अलग नहीं है। मथुरा में तैनात अधिकांश अधिकारी यही रवैया अनपाए हुए हैं जबकि योगी सरकार कहती है कि अयोध्‍या के बाद उसका सारा फोकस मथुरा के विकास तथा यहां के लोगों की समस्याओं के समाधान पर टिका है। 
आज इस बाबत 'लीजेण्‍ड न्यूज़' ने मथुरा में सत्ताधारी दल के जिलाध्‍यक्ष निर्भय पांडे से फोन पर बात की और पूछा कि क्या यह बड़ी समस्‍या उनके संज्ञान में है? 
इस पर उनका कहना था कि फिलहाल चुनाव संबंधी कार्य के लिए मैं आजमगढ़ में हूं, और समय मिलते ही इसे चेक करके उच्‍च अधिकारियों से बात करूंगा। 
मथुरा बीजेपी के महानगर अध्‍यक्ष घनश्‍याम लोधी ने बताया कि वह भी चुनाव प्रचार के लिए श्रावस्ती गए हुए हैं, और लौटकर जिलाधिकारी से इस संबंध में बात करेंगे। 
मथुरा में कांग्रेस के जिलाध्‍यक्ष भगवान सिंह वर्मा को जब इस समस्या से अवगत कराया गया तो उन्होंने भी चुनाव प्रचार में व्‍यस्तता का हवाला देते हुए कहा कि समय मिलते ही वो इस मुद्दे को जिलाधिकारी के सामने रखेंगे। 
उनका कहना था कि वह पड़ोसी राज्य हरियाणा के गुरूग्राम से लोकसभा चुनाव लड़ रहे अभिनेता राजबब्बर के चुनाव प्रचार में लगे हैं। और वहां से फ्री होने पर यह मुद्दा जरूर उठाएंगे। 
बहरहाल, 1 जून को लोकसभा के चुनाव संपन्न होने जा रहे हैं और 4 जून को उनका नतीजा भी निकल आएगा। बस देखना यह होगा कि सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेतागण इसके बाद इस अत्यंत जरूरी मुद्दे पर कितने गंभीर होते हैं और इसका निराकरण कैसे करते हैं। फिलहाल तो समाधान के लिए दिए गए सीयूजी नंबर अपने आप में एक समस्या बनकर रह गए हैं जिसका हल शायद योगी जी जैसे सीएम को भी नहीं सूझ रहा। 
यदि ऐसा न होता तो अपने पहले कार्यकाल में उठाई गई इस समस्‍या का कोई तो समाधान योगी जी दूसरे कार्यकाल तक जरूर ढूंढ चुके होते। 
अधिकारी भी भली-भांति जानते हैं कि ऊपर से आए आदेश-निर्देशों का कितना और किस तरह पालन करना है। इसीलिए सरकारें बदलती हैं लेकिन सरकारी अफसरों की कार्यप्रणाली जस की तस रहती है। उसमें कहीं कोई बदलाव नहीं आता।  
इतना जरूर है कि जिला अध्‍यक्ष और महानगर अध्‍यक्ष के रूप में बैठे सत्ताधारी दल के पदाधिकारी अगर इस ओर ध्‍यान दें और खुद मॉनिटरिंग करके सरकार तक जमीनी हकीकत पहुंचाएं तो काफी हद तक अधिकारियों की मनमानी पर शिकंजा कसा जा सकता है। वरना ढर्रे पर तो सब चल ही रहा है क्‍योंकि लखनऊ में बैठे अधिकारी रोज-रोज फैक्ट चेक नहीं कर सकते। करते भी हैं तो नोटिस देकर खाना-पूरी कर लेते हैं, जैसा 15 मार्च 2021 को किया तो गया लेकिन किसी अधिकारी के खिलाफ कोई एक्शन हुआ हो, इसकी कोई सूचना कहीं से नहीं मिली। नतीजा सामने है। 
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

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