महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण ने मुनि उत्तंक को अपना दिव्य रूप दिखाते वक्त कहा था कि संसार की रक्षा और धर्म संस्थापन के लिए मैं तरह-तरह के जन्म लेता रहता हूं। जिस समय जिस योनि में जन्म लेता हूं, उस समय उस अवतार के धर्म का पालन करता हूं। देवताओं में अवतरित होते समय देवताओं का सा व्यवहार करता हूं, यक्ष के अवतार में यक्ष का सा और राक्षस अवतार में राक्षसों जैसा आचरण करता हूं। इसी प्रकार मनुष्य अथवा पशु योनि में जन्म लेने पर उन्हीं जैसा आचरण करता हूं। जिस समय जिस ढंग से धर्म स्थापना का कार्य पूरा होता हो, उस समय उसी रीति व नीति से काम किया करता हूं ताकि अपना उद्देश्य सिद्ध कर सकूं।
शांति की स्थापना के लिए लड़े गये महाभारत जैसे भीषण युद्ध के नायक श्रीकृष्ण का यह कथन आज बहुत प्रासांगिक हो चुका है क्योंकि धर्म संस्थापन की जितनी आवश्यकता महाभारत काल में थी, उतनी ही अब फिर महसूस की जा रही है। फर्क सिर्फ इतना है कि उस युद्ध में श्रीकृष्ण ने अर्जुन का सारथी बनकर मार्गदर्शन किया था लेकिन आज न कोई मार्ग दिखाई दे रहा है और ना मार्गदर्शक।
दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र जिन चार खम्भों पर टिका है, उन्हें भ्रष्टाचार की दीमक ने खोखला कर दिया है। स्थिति इतनी दयनीय है कि पता नहीं ये खम्भे कब भरभराकर गिर जाएं। यदि ऐसा होता है तो न लोक बचेगा और ना तंत्र। लोकतंत्र को बचाने की जिम्मेदारी यूं तो सबकी है लेकिन सर्वाधिक अहम् भूमिका निभानी है उन्हीं चार खम्भों को जो आज अपना ही बोझ नहीं उठा पा रहे। विधायिका हो या न्यायपालिका, या फिर कार्यपालिका ही क्यों न हो, सब अपनी-अपनी ढपली से अपना-अपना राग अलाप रहे हैं क्योंकि सबके अपने-अपने स्वार्थ हैं। शेष बची किसी भी किस्म के संवैधानिक अधिकारों से महरूम और चौथे स्तंभ की उपमा प्राप्त ‘पत्रकारिता’, तो उसे बाजारवाद का घुन लग चुका है। वह अब मिशन न रहकर खालिस व्यवसाय बन चुकी है।
पत्रकारिता का जो रूप आज सामने आ खड़ा हुआ है, उसे देखकर यह सोचना भी बेमानी है कि अब वह कभी अपने इतिहास को दोहरा पायेगी। जाहिर है कि अब यदि वह वतर्मान हालातों का मुकाबला करेगी भी तो, इसी रूप में करेगी। नये जमाने के हथियारों से और नई व व्यावसायिक सोच के साथ। कुछ समय पहले तक शायद ही किसी ने सोचा हो कि प्रिंट मीडिया के अतिरिक्त भी पत्रकारिता का कोई रूप सामने आयेगा लेकिन देखते-देखते इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने अपनी जड़ जमा ली और आज अनगिनित न्यूज़ चैनल दिन-रात ब्रेक्रिंग न्यूज़ परोस रहे हैं।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बाद आज वेब पत्रकारिता ने बड़ी तेजी से इस क्षेत्र में दस्तक दी है। जाहिर है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला यह मुल्क भी इससे अछूता नहीं है। पत्रकारिता के तमाम आयाम इस माध्यम ने खोले हैं। ग्यारह वर्ष तक प्रिंट मीडिया के क्षेत्र में दैनिक अखबार का सफल प्रकाशन करने के बाद करीब वर्ष 2009 में जब ”लीजेण्ड न्यूज़” ने वेब पत्रकारिता के क्षेत्र में मथुरा जनपद से अपने कदम बढ़ाये थे तो उसका मकसद सारी दुनिया नाप लेना ही था। वह दुनिया जिसमें भारत का नाम एक ओर विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की हैसियत से दर्ज है तो दूसरी ओर भ्रष्टतम देशों की सूची में अव्वल नम्बर पर आता है।
दुनिया की इस दूसरी सबसे बड़ी आबादी को भ्रष्टाचार की दलदल से निकालने के लिए लोकतंत्र के चारों खम्भों को अपने-अपने माध्यमों का ठीक उसी प्रकार इस्तेमाल करना होगा जिसका जिक्र मुनि उत्तंक से श्रीकृष्ण ने किया था।
यहां श्रीकृष्ण की यह युक्ति कारगर नजर आती है कि ”जिस समय जिस ढंग से धर्म स्थापना का कार्य पूरा होता हो, उस समय उसी रीति व नीति से काम किया करता हूं ताकि अपना उद्देश्य सिद्ध कर सकूं।” अर्थात जिस रूप में ये खम्भे आज विद्यमान हैं उसी रूप में, क्योंकि रूप बदलने के लिए अब न समय शेष है और न परिस्थतियां उसकी इजाजत देती हैं। ”लीजेण्ड न्यूज़” अपनी इस जिम्मेदारी का निर्वहन करने में कभी पीछे नहीं रहेगा क्योंकि उसका भी ताल्लुक श्रीकृष्ण की पावन भूमि से है। उस भूमि से जिसे ब्रज वसुंधरा कहा जाता है और जहां कृष्ण ने धर्म की स्थापना के लिए रिश्तों से ऊपर उठकर अपने मामा कंस का भी वध किया था।