इस साल शीतला अष्टमी का व्रत इस सााल 2 अप्रैल रखा जाएगा. शीतला अष्टमी का त्योहार होली से ठीक आठ दिन बाद आता है. इसमें शीतला माता की पूजा की जाती है. शीतला अष्टमी के दिन मां शीतला को बासी ठंडे खाने का भोग लगाया जाता हैं, जिसे बसौड़ा कहा जाता है. इस दिन बासी खाना प्रसाद के तौर पर खाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन से खाना बासी होने लगता है. कई लोगों के यहां शीतला सप्तमी तो कई लोगों के यहां अष्टमी मनाई जाती है. कुछ लोग होली के बाद के सोमवार को भी शीतला माता का पूजन कर लेते हैं.

शीतला अष्टमी शुभ मुहूर्त 

चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 01 अप्रैल को रात 09 बजकर 09 मिनट से शुरू होगी और अष्टमी तिथि 02 अप्रैल को रात 08 बजकर 08 मिनट तक रहेगी. ऐसे में उदयातिथि के अनुसार, शीतला अष्टमी का पर्व 02 अप्रैल को मनाया जाएगा.

शीतला अष्टमी पूजा विधि

शीतला अष्टमी व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें और व्रत का संकल्प लें.
एक थाली में एक दिन पहले बनाए गए पकवान जैसे मीठे चावल, रोटी आदि रख लें.
पूजा के लिए एक थाली में आटे के दीपक, रोली, हल्दी, अक्षत, वस्त्र बड़कुले की माला, मेहंदी, सिक्के आदि रख लें. इसके बाद शीतला माता की पूजा करें.
माता शीतला को दीपक जलाएं और उन्हें जल अर्पित करें. वहां से थोड़ा जल घर के लिए भी लाएं और घर आकर उसे छिड़क दें.
माता शीतला को यह सभी चीजें अर्पित करें फिर परिवार के सभी लोगों को रोली या हल्दी का टीका लगाएं.
यदि पूजन सामग्री बच जाए तो गाय को अर्पित कर दें. इससे आपके जीवन में खुशहाली बनी रहेगी.

शीतला अष्टमी का महत्व

ऐसी मान्यता है कि मां शीतला की आराधना करने से बच्चों को दुष्प्रभावों से मुक्ति मिलती हैं. माता शीतला की आराधना से व्यक्ति को बीमारियों से मुक्ति मिलती है. इस दिन शीतला माता को बासी भोजन का भोग लगाने की परंपरा है. शीतला अष्टमी के दिन ताजा भोजन नहीं पकाया जाता है. एक दिन पहले ही मीठे चावल, राबड़ी, पुए, हलवा, रोटी आदि पकवान तैयार किए जाते हैं. जिनका भोग अगले दिन यानी शीतला अष्टमी के दिन देवी को चढ़ाया जाता है. जिसका अपना अलग महत्व है.

- Legend News
 

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