12 अप्रैल 1924 को गोवा के सालिगाव नामक स्‍थान पर एक कैथोलिक परिवार में जन्‍मे जाने-माने भारतीय चित्रकार फ़्राँसिस न्यूटन सूजा की मृत्यु 28 मार्च 2002 को मुंबई में हुई। एमएफ हुसैन, एसएच रज़ा और केएच आरा आदि के साथ-साथ एफएन सूजा भी ‘प्रोग्रेसिव आर्ट्स ग्रुप ऑफ़ बॉम्बे’ के संस्थापक सदस्य थे। स्वतंत्रता के बाद वाली पीढ़ी के वे पहले ऐसे भारतीय चित्रकार थे, जिन्हें पश्चिम में बहुत पहचान मिली। उन्हें उनके आविष्कारी मानव आकृतियों के लिए भी जाना जाता है। 
प्रारंभिक जीवन
एफएन सूजा जब मात्र तीन महीने के थे, तब उनके पिता की मृत्यु हो गयी। उनकी मॉं ने उनका नाम गोवा के पैट्रन सेंट, ‘सेंट फ्रांसिस जेविएर’ के नाम पर रखा। उनकी मॉं कपड़ा सिलाई का काम करती थीं, जिसकी झलक सूजा के एक प्रसिद्ध कृति में भी देखने को मिलती है।
शिक्षा
एफएन सूजा ने मुंबई के सेंट जेविएर्स कॉलेज में पढ़ाई के लिए दाखिला लिया, पर एक दिन शौचालय में टॉयलेट पर भित्ति चित्रण करने की वजह से निकाल दिया गया। उन्होंने यह दलील दी कि वे तो सिर्फ पहले से बने हुए चित्र को ठीक कर रहे थे क्योंकि वह बहुत ही बुरा बना था पर कॉलेज प्रशासन ने उनकी बात नहीं मानी और उन्हें निकाल दिया गया। एफएन सूजा मुंबई के प्रसिद्ध सर जेजे स्कूल ऑफ़ आर्ट्स में अध्ययनरत थे, पर भारत छोड़ो आन्दोलन के समर्थन के कारण उन्हें यहाँ से भी निकाल दिया गया। 1947 में एफएन सूजा कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया में शामिल हो गए।
कॅरियर
1947 में एमएफ हुसैन. एसएच रज़ा और केएच आरा आदि के साथ-साथ मिलकर एफएन सूजा ने ‘प्रोग्रेसिव आर्ट्स ग्रुप ऑफ़ बॉम्बे’ की स्थापना की। इस संगठन का मकसद था भारतीय चित्रकारों को ‘नए तरीकों के प्रयोग’ में प्रोत्साहन देना था।
1948 में एफएन सूजा के चित्रों की पहली प्रदर्शनी लंदन के ‘बर्लिंगटन हाउस’ में लगी। 1949 में सूजा भारत छोड़कर इंग्लैंड चले गए जहाँ प्रारंभ में उन्हें एक चित्रकार के रूप में अपने आप को स्थापित करने के लिए संघर्ष करना पड़ा। इसलिए उन्होंने पत्रकार के तौर पर भी कार्य किया। 1954 में लन्दन के ‘द इंस्टिट्यूट ऑफ़ कंटेम्पररी आर्ट्स’ ने अपनी एक प्रदर्शनी में सूजा के भी चित्रों को प्रदर्शित किया। 1955 में उनका एक आत्मकथात्मक लेख ‘निर्वाना ऑफ़ अ मैगोट’ स्टेफेन स्पेंडर के ‘एनकाउंटर’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ। इसके बाद उनके कॅरियर में सफलता का दौर प्रारंभ हुआ। स्पेंडर ने सूजा को ‘गैलरी वन’ के मालिक और आर्ट डीलर विक्टर मस्ग्रेव से मिलवाया, जिसके बाद 1955 में सूजा की एक प्रदर्शनी पूर्ण रूप से बिक गयी।
प्रदर्शनी
1959 में उन्होंने ने ‘वर्ड्स एंड लाइन्स’ प्रकाशित की। इसके बाद उनका कॅरियर धीरे-धीरे ऊपर उठता गया और उन्होंने कई प्रदर्शनियों में अपने कृतियों को प्रदर्शित किया। जॉन बर्गर जैसे कला समीक्षकों ने उनकी कला की बहुत तारीफ की। 1967 में सूजा न्यूयॉर्क चले गए और वहीं रहने लगे। 1977 में उन्होंने ‘कामनवेल्थ आर्टिस्ट्स ऑफ़ फेम’ प्रदर्शनी में भाग लिया और अपने कृतियों की एकल प्रदर्शनी पेरिस (1954 और 1960) और डेट्रॉइट (1968) जैसे शहरों में लगाई। उनके चित्रों की प्रदर्शनी दिल्ली (1987 और 1996), मुंबई (1987) और करांची (1988) में भी लगाई गयी।
एफएन सूजा की कई पेंटिंग्स लाखों अमेरिकी डॉलर में बिकीं। 2005 में उनकी एक पेंटिंग ‘बर्थ’ क्रिस्टी के नीलामी में लगभग 11.3 करोड़ रुपये में बिकी। इसे भारतीय उद्योगपति अनिल अंबानी की पत्नी टीना अम्बानी ने अपने ‘हारमनी आर्ट्स फाउंडेशन’ के लिए खरीदा था। सितम्बर 2015 में उनकी यही पेंटिंग लगभग 27 करोड़ रुपये में बेची गयी। इसे दिल्ली की किरण नादर ने खरीदा। इसके साथ ही एफ़एन सूजा भारत के सबसे महंगे आर्टिस्ट बन गए। 
एफएन सूजा ने तीन विवाह किएऔर अपना अंतिम समय श्रीमती लाल के साथ मुंबई में बिताया। यहीं उनका निधन हुआ। श्रीमती लाल अंतिम समय उनके साथ रहीं। 
Compiled: Legend News

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