हिन्दी के उपन्यासकार, कहानीकार, नाटककार एवं व्यंग्यकार नरेन्द्र कोहली की आज पुण्यतिथि है। 6 जनवरी 1940 को अविभाजित भारत के सियालकोट में पैदा हुए नरेन्द्र कोहली की मृत्यु 17 अप्रैल 2021 को दिल्ली में हुई। 
नरेन्द्र कोहली ने साहित्य की सभी प्रमुख विधाओं (यथा उपन्यास, व्यंग्य, नाटक, कहानी) एवं गौण विधाओं (यथा संस्मरण, निबंध, पत्र आदि) और आलोचनात्मक साहित्य में अपनी लेखनी चलाई। हिन्दी साहित्य में 'महाकाव्यात्मक उपन्यास' की विधा को प्रारंभ करने का श्रेय नरेन्द्र कोहली को ही जाता है। पौराणिक एवं ऐतिहासिक चरित्रों की गुत्थियों को सुलझाते हुए उनके माध्यम से आधुनिक सामाज की समस्याओं एवं उनके समाधान को समाज के समक्ष प्रस्तुत करना कोहली की अन्यतम विशेषता थी। 
जीवन परिचय
नरेन्द्र कोहली के पिता परमानन्द कोहली सियालकोट के मध्यम वर्गीय नौकरी पेशा परिवार में जन्मे थे। आंखों के रोग की वजह से उन्‍हें आठवीं कक्षा में ही स्कूल से उठा लिया गया इसलिए पढ़ने-लिखने का शौक होते हुए भी वे आगे पढ़ नहीं सके लेकिन उर्दू में लिखे अपने तीन चार उपन्यासों की पांडुलिपियां अपने लेखक पुत्र के लिए उत्‍तराधिकार स्वरूप छोड़ गए। 
शिक्षा
नरेन्द्र कोहली की शिक्षा का आरंभ पांच-छह वर्ष की अवस्था में देवसमाज हाई स्कूल लाहौर से हुआ। उसके पश्चात् कुछ महीने स्यालकोट के गंडासिंह हाई स्कूल में भी शिक्षा पाई। 1947 ई. में भारत के विभाजन के पश्चात् परिवार जमशेदपुर (अब झारखंड में) चला आया। उच्च शिक्षा के लिए जमशेदपुर को-ऑपरेटिव कॉलेज में प्रवेश लिया। आईए (1959 ई.) की परीक्षा बिहार विश्वविद्यालय से दी। बीए में अनिवार्य अंग्रेज़ी के साथ दर्शनशास्त्र और हिन्दी साहित्य (ऑनर्स) का चुनाव किया। 1961 ई. में जमशेदपुर को-ऑपरेटिव कॉलेज (रांची विश्वविद्यालय) से बीए ऑनर्स (हिंदी) कर एमए की शिक्षा के लिए दिल्ली चले आए। 1963 ई. में रामजस कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) से हिंदी साहित्य में एमए की परीक्षा उत्‍तीर्ण की। इसी विश्वविद्यालय से 1970 ई. में पीएचडी (विद्या वाचस्पति) की उपाधि प्राप्त की। 
अध्यापन
नरेन्द्र कोहली ने अपनी पहली नौकरी दिल्ली के पीजीडीएवी (सांध्य) कॉलेज में हिंदी के अध्यापक (1963-65ई.) के रूप में की। दूसरी नौकरी दिल्ली के मोतीलाल नेहरू कॉलेज में 1965 ई. में आरंभ की और 1 नवंबर 1995 ई. को पचपन वर्ष की अवस्था में स्वैच्छिक अवकाश लेकर नौकरियों का सिलसिला समाप्त कर दिया। 
साहित्यिक परिचय 
1960 ई. में नरेन्द्र कोहली की कहानियां प्रकाशित होनी आरंभ हुई थीं, जिनमें वे साधारण पारिवारिक चित्रों और घटनाओं के माध्यम से समाज की विडंबनाओं को रेखांकित कर रहे थे। 1965 ई. के आस-पास वे व्यंग्य लिखने लगे। उनकी भाषा वक्र हो गई थी, और देश तथा राजनीति की विडंबनाएं सामने आने लगी थीं। उन दिनों लिखी गई अपनी रचनाओं में उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक जीवन की अमानवीयता, क्रूरता तथा तर्कशून्यता के दर्शन कराए। हिंदी का सारा व्यंग्य साहित्य इस बात का साक्षी है कि अपनी पीढ़ी में उनकी सी प्रयोगशीलता, विविधता तथा प्रखरता कहीं और नहीं है। नरेन्द्र कोहली ने रामकथा से सामग्री लेकर चार खंडों में 1800 पृष्ठों का एक बृहदाकार उपन्यास लिखा। कदाचित संपूर्ण रामकथा को लेकर किसी भी भाषा में लिखा गया यह प्रथम उपन्यास है। 
नरेन्द्र कोहली ने एक उपन्यास- 'अभिज्ञान' कृष्णकथा को लेकर लिखा। कथा राजनीतिक है। निर्धन और अकिंचन सुदामा को सामर्थ्यवान श्रीकृष्ण, सार्वजनिक रूप से अपना मित्र स्वीकार करते हैं तो सामाजिक, व्यावसायिक और राजनीतिक क्षेत्रों में सुदामा की साख तत्काल बढ़ जाती है किंतु इस कृति का मेरुदंड भगवद्गीता का 'कर्म सिद्धांत' है। 
नरेन्द्र कोहली का महाभारत की कथा पर आधारित उपन्‍यास एक विराट कृति है जो भारतीय जीवन, चिंतन, दर्शन तथा व्यवहार को मूर्तिमंत रूप में प्रस्तुत करती है। नरेन्द्र कोहली ने इस कृति को अपने युग में पूर्णत: जीवंत कर दिया है। उन्होंने अपने इस उपन्यास में जीवन को उसकी संपूर्ण विराटता के साथ अत्यंत मौलिक ढंग से प्रस्तुत किया है। जीवन के वास्तविक रूप से संबंधित प्रश्नों का समाधान वे अनुभूति और तर्क के आधार पर देते हैं। युधिष्ठिर, कृष्ण, कुंती, द्रौपदी, बलराम, अर्जुन, भीम तथा कर्ण आदि चरित्रों को अत्यंत नवीन रूप में पेश किया। 
नरेन्द्र कोहली ने एक ओर उपन्यास श्रृंखला आरंभ कर पाठकों को चकित कर दिया। यह है, 'तोड़ो कारा तोड़ो'। यह शीर्षक रवीन्द्रनाथ ठाकुर के एक गीत की एक पंक्ति का अनुवाद है; किंतु उपन्यास का संबंध स्वामी विवेकानन्द की जीवनकथा से है। स्वामी जी का जीवन निकट अतीत की घटना है। उनके जीवन की सारी घटनाएं सप्रमाण इतिहासांकित हैं। 
सम्मान एवं पुरस्कार
राज्य साहित्य पुरस्कार 1975-76 ई. (साथ सहा गया दुख) शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश शासन, लखनऊ।
उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान पुरस्कार 1977-78 ई. (मेरा अपना संसार), उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ।
इलाहाबाद नाट्य संघ पुरस्कार, 1978 ई. (शंबूक की हत्या), इलाहाबाद नाट्य संगम, इलाहाबाद।
उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान पुरस्कार, 1979-80 ई. (संघर्ष की ओर) उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ।
मानस संगम साहित्य पुरस्कार, 1978 ई. (समग्र रामकथा), मानस संगम, कानपुर।
साहित्य सम्मान 1985-86 ई. (समग्र साहित्य), हिंदी अकादमी, दिल्ली।
साहित्यिक कृति पुरस्कार, 1987- 88 ई. (महासमर-1, बंधन), हिंदी अकादमी, दिल्ली।
डॉ. कामिल बुल्के पुरस्कार 1989-90 ई. (समग्र साहित्य), राजभाषा विभाग, बिहार सरकार, पटना।
शलाका सम्मान 1995- 96 ई. (समग्र साहित्य), हिंदी अकादमी, दिल्ली।
साहित्य भूषण - 1998 (समग्र साहित्य), उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय सम्मान - 2004 ई. (समग्र साहित्य), उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ।
व्यास सम्मान (2012)
पद्म भूषण (2017) 
Compiled: Legend News

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