हिन्दी के प्रसिद्ध कवि तथा गांधीवादी विचारक भवानी प्रसाद मिश्र का आज जन्मदिन है। 29 मार्च 1913 को मध्‍यप्रदेश के होशंगाबाद जिला अंतर्गत टिगरिया गाँव में जन्‍मे  भवानी प्रसाद मिश्र की मृत्यु 20 फरवरी को मध्‍यप्रदेश के ही नरसिंहपुर में हुई थी। वे दूसरे तार-सप्तक के एक प्रमुख कवि थे। गाँधीवाद की स्वच्छता, पावनता एवं नैतिकता का प्रभाव और उसकी झलक भवानी प्रसाद मिश्र की कविताओं में साफ देखी जा सकती है। उनका प्रथम संग्रह 'गीत-फ़रोश' अपनी नई शैली, नई उद्भावनाओं और नये पाठ-प्रवाह के कारण अत्यंत लोकप्रिय हुआ। 
जीवन परिचय
भवानी प्रसाद मिश्र की प्रारंभिक शिक्षा क्रमश: सोहागपुर, होशंगाबाद, नरसिंहपुर और जबलपुर में हुई| उन्होंने हिन्दी, अंग्रेज़ी और संस्कृत विषय लेकर बीए पास किया। भवानी प्रसाद मिश्र ने महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर शिक्षा देने के विचार से एक स्कूल खोल लिया और उस स्कूल को चलाते हुए ही 1942 में गिरफ्तार होकर 1949 में छूटे। 
साहित्यिक जीवन
भवानी प्रसाद मिश्र का कविताएँ लिखने की शुरूआत लगभग 1930 से हो गयी थी और कुछ कविताएँ पंडित ईश्वरी प्रसाद वर्मा के सम्पादन में निकलने वाले 'हिन्दू पंच' में हाईस्कूल पास होने के पहले ही प्रकाशित हो चुकी थीं। 1932-33 में वे माखनलाल चतुर्वेदी के संपर्क में आए। श्री चतुर्वेदी आग्रहपूर्वक कर्मवीर में भवानी प्रसाद मिश्र की कविताएँ प्रकाशित करते रहे। हंस में काफ़ी कविताएँ छपीं और फिर अज्ञेय जी ने दूसरे सप्तक में इन्हें प्रकाशित किया। दूसरे सप्तक के प्रकाशन के बाद प्रकाशन क्रम ज्यादा नियमित होता गया। उन्होंने चित्रपट (सिनेमा) के लिए संवाद लिखे और मद्रास के एबीएम में संवाद निर्देशन भी किया। मद्रास से मुम्बई आकाशवाणी के निर्माता बन गए और आकाशवाणी केन्द्र, दिल्ली पर भी काम किया। 
कृतियाँ
गीत-फ़रोश
चकित है दुख
गांधी पंचशती
अंधेरी कविताएँ
बुनी हुई रस्सी
व्यक्तिगत
ख़ुश्बू के शिलालेख
परिवर्तन जिए
त्रिकाल संध्या
अनाम तुम आते हो
इंदन मम्
शरीर, कविता, फसलें और फूल
मानसरोवर
दिन
संप्रति
‘नीली रेखा तक’ आदि कुल 22 पुस्तकें आपकी प्रकाशित हुईं।
आपने संस्मरण, निबंध तथा बाल-साहित्य भी रचा। 
मानववादी कवि
आज़ादी के बाद भवानी प्रसाद अधिकतर दिल्ली की धूल और धुएं के बीच शहर में रहे परंतु देश के कल्याण की कामना ने उन्हें कभी दिल्ली की माया में फंसने नहीं दिया। यूं बड़े लोगों के साथ जान-पहचान की कमी न थी। महात्मा गांधी, विनोबा भावे, जवाहरलाल नेहरू, जैसों के साथ उनका परिचय था। बजाज कुटुम्ब के साथ घरोपा था। श्रीमन्नारायण तो उनके मुक्त प्रशंसक थे परंतु इनके पहचान का खुद लाभ कभी नहीं लिया। विचारों से भवानी बाबू सच्चे गांधीवादी थे मगर उनका कवि हृदय किसी वाद के खांचे में समा जाए ऐसा न था इसीलिए वे गांधीवादी कवि बनने के बदले मानववादी कवि बने रहे। भवानी प्रसाद मिश्र की कविताओं की समीक्षा करते हुए प्रोफेसर महावीर सरन जैन का कथन है कि "हिन्दी की नई कविता पर सबसे बड़ा आक्षेप यह है कि उसमें अतिरिक्त अनास्था, निराशा, विशाद, हताशा, कुंठा और मरणधर्मिता है। उसको पढ़ने के बाद जीने की ललक समाप्त हो जाती है, व्यक्ति हतोत्साहित हो जाता है, मन निराशावादी और मरणासन्न हो जाता है। यह कि नई कविता ने पीड़ा, वेदना, शोक और निराशा को ही जीवन का सत्य मान लिया है। नई कविता भारत की जमीन से प्रेरणा प्राप्त नहीं करती। इसके विपरीत यह पश्चिम की नकल से पैदा हुई है। भवानी प्रसाद मिश्र की कविताएँ इन सारे आरोपों को ध्वस्त कर देती हैं।
सम्मान और पुरस्कार
भवानी दादा की रचनाओं में पाठक से संवाद करने की क्षमता है। 1972 में आपकी कृति ‘बुनी हुई रस्सी’ के लिए आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। इसके अतिरिक्त अन्य अनेक पुरस्कारों के साथ-साथ आपने भारत सरकार का पद्म श्री अलंकार भी प्राप्त किया। 1981-82 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के संस्थान सम्मान से सम्मानित हुए और 1983 में उन्हें मध्य प्रदेश शासन के शिखर सम्मान से अलंकृत किया गया। 
Compiled: Legend News

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