कुंभ मेला से जुड़े शब्दों का ऊर्दू से जुड़ाव
कुंभ मेला यूं तो सनातन धर्म के संतों के धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है परंतु इसमें प्रयुक्त होने वाले शब्द ऊर्दू जबान से आते हैं जैसे कि शाही जुलूस, शाही स्नान, पेशवाई, जमातें, लाव-लश्कर और जखीरा आदि। तो जानने की उत्सुकता होती ही है कि आखिर इनका इतिहास क्या है और उर्दू लफ्जों से जुड़ाव क्यों है।
दरअसल संतों के अखाड़ों में इन शब्दों का न केवल प्रयोग होता है, बल्कि लिखापढ़ी में भी यही शब्द चलते हैं। अखाड़ों से राजा महाराजाओं के प्रवेश से भी शाही शब्द का जुड़ाव है। मुगलकाल में बादशाही कामकाज की भाषा फारसी और उर्दू बन चुकी थी। तब समाज में भी उसका प्रचलन सामान्य हो गया था।
संतों की प्रवेश वाई उसी काल में पेशवाई हो गई
कुंभ पर निकलने वाली संतों की प्रवेश वाई उसी काल में पेशवाई हो गई। एक कुंभ नगर से दूसरे कुंभ नगर लाए जाने वाले भारी भरकम कोष को जखीरे कहे जाने लगे। साधुओं की शोभायात्राएं शाही जुलूसों और शाही स्नानों में बदल गई। कालांतर में जब कुंभ मेलों में लूटपाट और कत्लेआम शुरू हुआ तब हिंदू राजाओं और रजवाड़ों ने साधुओं की धर्म यात्राओं, स्नानों और पेशवाई में अपनी सेनाओं को भेजना शुरू किया।
तब बैरागी, संन्यासी, उदासी, निर्मल, घीसापंथी, गरीबदासी, कबीरदासी, रामानंदी आदि साधुओं की जमातों में रजवाड़ों की सेनाएं अपने रथों, हाथियों, घोड़ों और हथियारों के साथ चला करती थी। ऐसे में साधुओं के अखाड़ों के साथ राजाओं और जागीरदारों को भी कुंभ स्नान का प्रतिफल प्राप्त हो जाता। इसी प्रकार देशभर में भ्रमणशील जमातें कुंभ से पूर्व रमतापंचों के साथ कुंभनगर पहुंचती।
पहले उनकी रक्षा अखाड़ों की अपनी सशस्त्र टुकड़ियां करती थी। बाद में जब बादशाहों की सेनाओं ने भी लूटपाट शुरू की तब हिंदू राजाओं ने अखाड़ों की रक्षा का दायित्व उठाया। जमाने बीत गए लेकिन पेशवाईयां, शाही स्नान आदि कुंभ आयोजनों का प्रमुख अंग आज भी बने हुए हैं। तमाम तैयारियां जमातों के शाही स्नानों के लिए की जा रही हैं।
– एजेंसी