सपा-रालोद गठबंधन: आगाज़ के अंदाज से अंजाम का अनुमान लगाना बहुत मुश्किल नहीं
उत्तर प्रदेश में 2022 के इस चुनाव का परिणाम क्या होगा और कौन सरकार बनाएगा, यह तो बेशक अभी भविष्य के गर्भ में है किंतु सपा-रालोद गठबंधन के आगाज़ का अंदाज उसके अंजाम का अनुमान लगाने को काफी है।
कई बैठकों के बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव तथा रालोद मुखिया जयंत चौधरी में सीटों के बंटवारे को लेकर भले ही बात बनती दिखाई दे रही हो लेकिन पहले मुजफ्फरनगर, छपरौली तथा बड़ोत की सीटों को लेकर बने दबाव और फिर मथुरा की मांट सीट पर उपजे विवाद ने स्पष्ट कर दिया कि इस गठबंधन की राह उतनी भी आसान नहीं है, जितनी ‘दोनों लड़के’ समझ बैठे हैं क्योंकि दोनों के दल बेशक मिल गए पर दिल शायद नहीं मिल सके।
मथुरा की मांट सीट का विवाद बहुत कुछ कहता है
दरअसल, ऐसा माना जा रहा था मथुरा की कुल पांच विधानसभा सीटों में से 3 पर रालोद के प्रत्याशी उतारे जाएंगे जबकि दो सीटें सपा के खाते में जाएंगी।
इसकी पुष्टि रालोद की 13 जनवरी को जारी की गई पहली सूची से भी हुई क्योंकि उसमें छाता, गोवर्धन तथा बल्देव के प्रत्याशी घोषित किए गए।
चूंकि मथुरा की सीटों पर चुनाव 10 फरवरी के दिन पहले चरण में होना है और यहां 14 जनवरी से नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है इसलिए प्रत्याशियों के चयन को बहुत समय नहीं बचा।
यहां तक तो सब ठीक था किंतु मथुरा की जनता को आश्चर्य तब हुआ जब अचानक रालोद ने मांट सीट पर भी योगेश नौहवार को लड़ाने की घोषणा कर दी और मथुरा-वृंदावन सीट से सपा ने सादाबाद के देवेन्द्र अग्रवाल को मैदान में उतार दिया।
योगेश नौहवार को प्रत्याशी घोषित करने से सपा में खलबली मच गई लिहाजा सपा के एमएसली और अखिलेश यादव के नजदीकी संजय लाठर ने ऐलान कर दिया कि मांट से तो वही लड़ेंगे।
योगेश नौहवार और संजय लाठर दोनों ही 2012 के उपचुनाव में मांट सीट से श्यामसुंदर शर्मा के सामने पराजित हो चुके हैं इसलिए शायद अपनी हार का बदला लेना चाहते हैं। तब योगेश नौहवार रालोद से और संजय लाठर सपा से श्यामसुंदर शर्मा के खिलाफ उतरे थे। इस उपचुनाव में योगेश दूसरे नंबर पर और संजय लाठर तीसरे नंबर पर रहे।
गौरतलब है कि 2012 के विधानसभा चुनाव में मथुरा से ही सांसद रहते जयंत चौधरी ने श्यामसुंदर शर्मा को शिकस्त दे दी थी लेकिन फिर उन्होंने सांसदी से त्यागपत्र न देकर विधायकी छोड़ दी जिसका उन्हें बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ा।
जयंत ने मांट का चुनाव जीतने के लिए तब जनता से ये वायदा किया था कि यदि वो प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुकी इस सीट से चुनाव जीत जाते हैं तो सांसदी छोड़कर मांट की जनता का प्रतिनिधत्व करेंगे। मांट की जनता ने उनका मान रखा लेकिन वो क्षेत्रीय जनता का मान नहीं रख सके और जीतने के बाद विधायकी से इस्तीफा दे दिया।
सिर्फ और सिर्फ लाभ की राजनीति करने वाले रालोद के तत्कालीन युवराज जयंत की इस हरकत का उन्हें बड़ा खामियाजा भी भुगतना पड़ा और उनके इस्तीफे से रिक्त इस सीट पर उपचुनाव में जनता ने फिर श्यामसुंदर शर्मा के सिर जीत का सेहरा बांधा।
2017 के चुनाव में एकबार फिर रालोद ने योगेश नौहवार को श्यामसुंदर शर्मा के सामने खड़ा किया किंतु इस बार भी वो श्याम के किले को भेदने में असफल रहे।
इस बार चूंकि सपा और रालोद गठबंधन के साथ चुनाव में हैं तो संजय लाठर और योगेश नौहवार दोनों को मैदान मारने की प्रबल संभावना दिख रही है।
ये बात अलग है कि मुलायम और अखिलेश के मुख्यमंत्री रहते भी न तो सपा कभी मथुरा की किसी सीट पर खाता खोल सकी और 2012 के चुनाव को छोड़ दें तो रालोद भी अपने इस गढ़ में कभी श्याम को हरा नहीं पाया।
शायद यही कारण है कि सपा को जहां इस बार गठबंधन के रहते मथुरा में मांट से अपना खाता खुलने की उम्मीद है वहीं रालोद को भी लगता है कि वह बाजी मार सकता है।
बहरहाल, संभावनाओं के इस खेल ने मांट का पूरा मामला बिगाड़ कर रख दिया है। यहां रालोद और सपा के बीच प्रत्यक्ष टकराव नजर आ रहा है। हालांकि इस टकराव को टालने का एक तरीका योगेश नौहवार तथा संजय लाठर दोनों को दरकिनार कर खुद रालोद मुखिया को मांट के मैदान में उतारकर ढूंढा जा रहा है किंतु वो भी इतना आसान नहीं है।
बताया जाता है संजय लाठर किसी भी सूरत में अपने कदम खींचने को तैयार नहीं हैं और योगेश नौहवार अपने समर्थकों की आड़ लेकर लड़ने का मन बना चुके हैं।
जो भी हो, परंतु एक बात तय है कि जितना रोचक मथुरा की मांट सीट का चुनाव हो चुका है उससे अधिक रोचक होगा चुनाव के बाद इस गठबंधन का उस अंजाम को पहुंचना जिसकी आशंका कई जगह टकराव के हालातों को देखकर पैदा हो रही है।
अधिकांश लोगों का मत है कि यदि चुनाव का ऊंट मनमाफिक करवट नहीं बैठा तो रालोद मुखिया ‘राजनीति में कुछ भी संभव’ है के जुमले को अपनी तथा अपने दल की फितरत के हिसाब से सार्थक करने में कतई देर नहीं करेंगे क्योंकि राजनीति के ‘आचार्य’ हमेशा से यह मानते भी रहे हैं कि यहां कोई किसी का न तो स्थायी दोस्त होता है और न स्थायी दुश्मन।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी