कुछ तो बड़ा संकेत दे रहा है यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का बार-बार श्रीकृष्ण जन्मभूमि पहुंचना
भारतीय जनता पार्टी सहित सभी हिंदूवादी संगठनों का कभी ये नारा हुआ करता था- “राम, कृष्ण, विश्वनाथ…तीनों लेंगे एकसाथ”।
हिंदूवादी दलों के इस नारे पर तब विपक्ष भी तंज कसता था क्योंकि राम मंदिर का ही विवाद सुलझने में नहीं आ रहा था, तो श्रीकृष्ण जन्मभूमि तथा काशी विश्वनाथ की बात अतिशयोक्ति लगती थी।
लंबी कानूनी लड़ाई के बाद जब तक अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ हुआ, तब तक भाजपा को एकबात पूरी तरह समझ में आ चुकी थी कि कानूनी लड़ाई लड़कर वह अपने नारे को कभी सार्थक नहीं कर सकती।
इसके अलावा अब वो स्थितियां-परिस्थितियां भी नहीं रहीं कि धर्म व आस्था से जुड़े किसी केस का निपटारा कराने के लिए साल-दर-साल अदालतों का मुंह देखा जाए।
संभवत: इसीलिए अयोध्या का फैसला आने से पहले ही नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार ने काशी विश्वनाथ और ज्ञानवापी मस्जिद के विवाद को हल करने का ऐसा नायाब तरीका खोज लिया जिससे ‘सांप मर जाए और लाठी भी न टूटे’ वाली कहावत चरितार्थ होती हो।
काशी चूंकि प्रधानमंत्री मोदी का संसदीय क्षेत्र था इसलिए इस ड्रीम प्रोजेक्ट को निर्धारित समय के अंदर पूर्ण कराने में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी नतीजतन देखते ही देखते एक भव्य विश्वनाथ कॉरीडोर सबके सामने है।
मोदी-योगी की जुगलबंदी ने एक बड़ी लाइन खींचकर काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के विवाद को इतना छोटा कर दिया कि उसका कोई महत्व ही नहीं रह गया। न अयोध्या की तरह मस्जिद की तरफ आंख उठाकर देखने की जरूरत पड़ी और न अदालती नतीजे का इंतजार करना पड़ा।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि मोदी सरकार ने बड़े सलीके से राम मंदिर निर्माण से पहले काशी विश्वनाथ का मुद्दा हल कर लिया।
जाहिर है कि अब सबका फोकस मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि बनाम शाही मस्जिद ईदगाह विवाद पर है। इसे लेकर हाल में दायर हुए वादों की बात यदि छोड़ भी दी जाए तो सन् 1967 से यह विवाद न्यायालय में लंबित है। यानी पिछले 54 वर्षों से ये मामला विचाराधीन है।
इन हालातों में यदि ये कहा जाए कि काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की तरह मथुरा में भी एक भव्य श्रीकृष्ण जन्मभूमि कॉरिडोर बनाकर कृष्ण जन्मभूमि व शाही मस्जिद ईदगाह के विवाद की न सिर्फ हवा निकाली जा सकती है बल्कि उसे इतना बौना बनाया जा सकता है कि वह अपना महत्व ही खो दे, तो कुछ गलत नहीं होगा।
यह इसलिए भी संभव है कि कटरा केशवदेव के दायरे में बनी शाही मस्जिद ईदगाह पर किसी भी किस्म के निर्माण अथवा जीर्णोद्धार को लेकर कानूनी बंदिशें पहले से लागू हैं जबकि श्रीकृष्ण जन्मभूमि को विस्तार देने में ऐसी कोई बाधा नहीं है।
भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की मथुरा के संदर्भ में पिछले दिनों से लगातार की जा रही बयानबाजी यह बताती है कि कुछ तो ऐसा है जो भाजपा सरकार सोचे बैठी है और जिससे “राम, कृष्ण, विश्वनाथ…तीनों लेंगे एकसाथ” का नारा फलीभूत किया जा सकता है।
कल यानि 19 दिसंबर 2021 को भी मथुरा में अपनी जनसभा करने आए सीएम योगी आदित्यनाथ जिस तरह अचानक बिना तय कार्यक्रम के श्रीकृष्ण जन्मस्थान जा पहुंचे उससे साफ संकेत मिलता है कि उनके दिमाग में कुछ तो बड़ा चल रहा है।
योगी आदित्यनाथ का बहुत कम समय के अंतराल में श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर यह पांचवा दौरा था, इस कारण भी चर्चाएं होना स्वाभाविक हैं। बेशक अभी चुनावों की विधिवत घोषणा का लोगों को इंतजार है किंतु फिजा में तैर रही बयार इसकी पुष्टि कर रही है कि दुंदुभि बज चुकी है, बस औपचारिकता शेष है।
यही कारण है कि सीएम योगी के कृष्ण जन्मस्थान दौरे की टाइमिंग से इस आशय के संकेत मिल रहे हैं। अब देखना कुछ बाकी है तो केवल यह कि इसका ऐलान कब तथा किस रूप में किया जाता है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी