अलख संस्कृत भाषा के शब्द अलक्ष्य (न लक्ष्यते लक्षकर्म्मणि) का तद्भव रूप है। जो लक्ष्य न हो पाए वह अलक्ष्य है। जिसे पारिभाषित नहीं किया जा सकता है, जिसका भेद करना सम्भव नहीं है, जिसे जाना न जा सके, जो दृश्य नहीं है, जो ज्ञात नहीं है, जो प्रत्यक्ष न हो, जो अगोचर हो, जो चिह्नित न किया जा सके, जो किसी भी प्रकार की प्रवृत्तियों से युक्त न हो। परब्रह्म ईश्वर के लिए यही कुछ कहा जाता है।

अलख ^१ वि॰ [सं॰ अलक्ष्य]

१. जो दिखाई न पड़े । जो नजर न आए । अदृश्य । अप्रत्यक्ष । उ॰—बुधि, अनुमान, प्रमान, स्त्रुति किऐं नीठि ठहराय । सूछम कटि परब्रह्म की, अलख, लखी नहि जाय ।-बिहारी र॰, दो॰ ६४८ ।

२. अगोचर । इंद्रियातीत । उ॰—जे उपमा पटतर लै दीजै ते सब उनहिं न लायक । जौ पै अलख रह्मौ चाहत तौ बादि भए ब्रजनायक ।-सूर॰, २ ।४६४५ ।

३. ईश्वर का एक विशेषण । उ॰—प्रलख अरूप अबरन सो करता । वह सबसों सब वहि सों बरता ।-जायसी (शब्द॰) । मुहा॰—अलख जगाना=(१) पुकारकर परमात्मा का स्मरण करना या कराना । (२) परमात्माके नाम पर भिक्षा माँगना । यौ॰—अलखधारी । अलखनामी । अलखनिरंजन । अलखपुरुष= ईश्वर । अलखमंव=निर्गुण संत संप्रदाय में ईश्वर मंत्र ।

अलख ^२ संज्ञा पुं॰ ब्रह्मा । ईश्वर

निरञ्जन (निर्गतमञ्जनं कज्जलं तदिव समलमज्ञानं वायस्मात्) वह है जो बिना अञ्जन का हो; दोषरहित हो; अज्ञान से रहित हो; जो किसी भी प्रकार की माया से प्रभावित न हो; निर्मल हो; किसी प्रकार के आवेग, वासना, लालसा, राग, क्रोध, अनुराग, आदि गुणों से युक्त न हो; निष्कलङ्क हो; निर्गुण हो; उसे निरञ्जन कहा जाता है। महादेव, शिव, अथवा ईश्वर के लिए इस विशेषण का प्रयोग किया जाता है।

निरंजन ^१ वि॰ [सं॰ निरञ्जन]

१. अंजन रहित । बिना काजल का । जैसे, निरंजन नेत्र ।

२. कल्मषशून्य़ । दोषरहित ।

३. माया से निर्लिप्त (ईश्वर का एक विशेषण) ।

४. सादा । बिना अंजन आदि का ।

निरंजन ^२ संज्ञा पुं॰

१. परमात्मा ।

२. महादेव ।

अतः अलख निरञ्जन का आह्वान उस निर्गुण, निराकार, अपरभाषित ईश्वर के लिए है; यह अलख निरञ्जन का उद्घोष गोरक्षनाथ (अथवा गोरखनाथ) ने आरम्भ किया मानते हैं। कहते हैं कि इसी उद्घोष के साथ गोरखनाथ ने भर्तृहरि को दीक्षा के लिए प्रेरित किया।

तो कुछ इसे भगवान दत्तात्रेय का जयघोष कहते हैं।

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