मथुरा। हमारी संस्कृति कभी एक रंगी नहीं रही, सभी रंगों से बनी साझी विरासत हमारी थाती रही है, जिन्हें साझी विरासत से दिक्कत है, वो नए इतिहास लिख रहे हैं, जाहिर है, वो एकांगी ही होगा। मिथकों को इतिहास बनाने की कोशिशें की जा रही हैं, इतिहास के चरित्रों को बिगाड़ा जा रहा है, यही कारण है कि ज्ञान-विज्ञान की इतनी प्रगति के बाद हमें आगे जाना चाहिए, जबकि हम पीछे जा रहे हैं, ऐसे में लेखकों का दायित्व और बढ़ जाता है, ऐसा भी नहीं है कि लिखा नहीं जा रहा बल्कि पूरी शिद्दत के साथ लिखा और पढ़ा भी जा रहा है।

यह विचार जनवादी लेखक संघ के संयुक्त महासचिव एवं जेएन पीजी कॉलेज, लखनऊ के प्रोफेसर डॉ नलिन रंजन सिंह ने जिला सम्मेलन में आयोजित 'साझा विरासत और लेखकीय दायित्व' विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी में व्यक्त किए। उन्होंने आगे कहा कि किताबें पढ़ने से ज्ञान का विस्तार होता है, जिससे आपके अंदर प्रश्न करने जिज्ञासा प्रकट होती है, वर्तमान परिदृश्य में प्रश्न करने से रोका जा रहा है, जो किसी भी विरासत के लिए न्यायोचित नहीं है। लेखकों को चाहिए कि अपने दायित्वों को समाज के सापेक्ष समझते हुए अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करें, जोकि आज की जरूरत है।

गोष्ठी के समापन पर संघ की जिला इकाई का गठन किया गया, जिसमें संरक्षक-मंडल डॉ ज़ेड हसन, डॉ आर के चतुर्वेदी, पूर्व जस्टिस महेश पुरी, डॉ हरिशंकर, टिकेन्द्र सिंह शाद अध्यक्ष, उपेन्द्र चतुर्वेदी उपाध्यक्ष, विवेक मथुरिया- उपाध्यक्ष, डॉ धर्मराज सिंह- सचिव, डॉ अनिल दिनकर- उप सचिव, प्रियंका खंडेलवाल- उप सचिव, डॉ शालिनी माहेश्वरी- कोषाध्यक्ष, कार्यकारिणी सदस्य कैलाश वर्मा, विजय पाल सिंह नागर, मुरारीलाल अग्रवाल, राजकिशोर, शिवम शर्मा, मेनिका गुप्ता, माधव चतुर्वेदी आदि निर्वाचित हुए।

कार्यक्रम में दिगम्बर सिंह, धर्मदेव, कृति शर्मा, गौरी शर्मा, रवि प्रकाश भारद्वाज, डॉ डी सी वर्मा, पुनीत शर्मा, अर्पित जादौन, सीमा पोरवाल, जगवीर सिंह आदि उपस्थित रहे। अध्यक्षता टिकेंद्र सिंह शाद ने तथा संचालन डॉ धर्मराज सिंह ने किया।
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