'बकरीद' के त्योहार का मुस्लिम धर्म में बहुत महत्व है। इस त्योहार को ईद-उल-अजहा या कुर्बानी का त्योहार भी कहा जाता है। रमजान के पवित्र महीने के ठीक 70 दिन बाद बकरीद मनाई जाती है। वैसे तो बकरीद की तारीख चांद दिखने से तय होती है, लेकिन इस साल बकरीद पूरे भारत में 10 जुलाई को मनाई जाएगी। यहां हम आपको कुर्बानीदान के इस पर्व से जुड़ी कुछ खास बातें बताएंगे। तो आइए जानते हैं क्या है बकरीद का इतिहास और कैसे मनाते हैं इस खास दिन को-
कैसे मानते हैं बकरीद का त्योहार: इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग ईदगाहों और मस्जिदों में जमात के साथ नमाज अदा करते हैं। त्योहार की शुरुआत सुबह नमाज अदा करने के साथ होती है। लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के घर भी जाते हैं और एक दूसरे को बधाई देते हैं। इसके अलावा इस दिन घर में एक से बढ़कर एक लजीज व्यंजन बनाए जाते हैं। 
कुर्बानी की हुई थी ऐसी शुरुआत: ऐसा कहा जाता है कि पैगंबर हजरत इब्राहिम ने सबसे पहले कुर्बानी देना शुरू किया था। कहा जाता है कि एक बार अल्लाह ने उनसे अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देने को कहा था। तब पैगंबर हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया था क्योंकि उनका बेटा उन्हें सबसे प्यारा था। 
पैगंबर के इस फैसले से अल्लाह बहुत खुश हुए। जैसे ही वह अपने 10 साल के बेटे की कुर्बानी देने जा रहा था, अल्लाह ने उसके बेटे की जगह एक बकरा भेजा। तभी से बकरीद के दिन बकरे की कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हुई। इस दिन बकरे के अलावा ऊंट और भेड़ की भी कुर्बानी दी जा सकती है। कुर्बानी के बाद मांस को तीन भागों में बांटा जाता है। पहला हिस्सा रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ोसियों को दिया जाता है, जबकि दूसरा हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों को बांटा जाता है। तीसरा और आखिरी हिस्सा परिवार के लिए रखा जाता है। 
बकरीद ऐसे दी जाती है कुर्बानी: कुर्बानी देने के लिए भी कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। इस दिन केवल स्वस्थ पशुओं की कुर्बानी दी जाती है। इसके अलावा त्याग का धन ईमानदारी से अर्जित करना चाहिए। गलत तरीके से कमाया गया धन बलिदान नहीं होता है।
-एजेंसियां

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