माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी! आप यह सोच सकते हैं कि उत्तर प्रदेश में व्याप्‍त भ्रष्‍टाचार की असलियत उजागर करने के लिए महाभारत नायक श्रीकृष्ण की पावन जन्मस्‍थली मथुरा को ही क्यों चुना? 
योगी जी! इसके पीछे की वजह यह है कि यह धार्मिक जनपद भ्रष्टाचार को लेकर आपकी जीरो टॉलरेंस नीति के खिलाफ पक रही हांडी का वो चावल है जिसके जरिए आप पूरे प्रदेश का हाल जान सकते हैं। 
चूंकि किसी भी पापकर्म के लिए धर्म एक बड़ी आड़ का काम करता है इसलिए कृष्‍ण की नगरी हमेशा से ही भ्रष्ट अधिकारी एवं कर्मचारियों की पसंदीदा जगह रही है। सभी सरकारी विभाग के अधिकारी और कर्मचारियों के लिए मथुरा जनपद किसी दुधारू गाय की तरह है। 
आपको मथुरा का जवाहर बाग कांड तो जरूर याद होगा। आपको याद होगा कि अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी की पूर्ण बहुमत प्राप्‍त सरकार में 280 एकड़ सरकारी जमीन पर रामवृक्ष यादव अपने पूरे गिरोह के साथ काबिज हो गया था और पूरा प्रशासन उसके सामने नतमस्तक था। 
फलदार वृक्षों से आच्छादित उद्यान विभाग की बेशकीमती जमीन पर वर्ष 2014 में काबिज हुआ रामवृक्ष यादव इतना दुस्‍साहसी हो चुका था कि 02 जून 2016 के दिन जब इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश से मथुरा का पुलिस प्रशासन जमीन को कब्जा मुक्त कराने पहुंचा तो उसने हमला कर दिया। इस हमले में तत्कालीन एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी तथा तत्कालीन थानाध्‍यक्ष संतोष यादव ने तो जान गंवाई ही, अन्य करीब 27 लोग और मारे गए। रामवृक्ष का आज तक नहीं पता कि वो मारा गया या जिंदा है। 
हाईकोर्ट के आदेश से जवाहर बाग कांड की जांच मार्च 2017 में सीबीआई को सौंप दी गई किंतु मारे गए दोनों पुलिस अधिकारियों के परिजन आज तक न्याय की उम्मीद लगाए बैठे हैं। 
माननीय योगी जी, ये तो एक उदाहरणभर है अन्यथा मथुरा में भ्रष्टाचार की दास्‍तान और भ्रष्‍टाचारियों की फेहरिस्‍त बहुत लंबी है। शासन किसी का भी हो, भ्रष्‍टाचारियों ने हर शासन में यहां की काली कमाई से अपनी तिजोरियां भरी हैं। 
आपकी भ्रष्‍टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति उनकी संपत्ति में जीरो बढ़ाने का काम कर रही है। यकीन न हो तो पिछले सात साल में यहां तैनात रहे अधिकारियों की संपत्ति का ब्यौरा निकलवा लीजिए, हकीकत आपके सामने होगी। ये अधिकारी किसी भी विभाग के हो सकते हैं, यकीन कीजिए आप निराश नहीं होंगे। 
सबसे पहले बात पुलिस-प्रशासन की
जिस जिले के उच्‍च पुलिस अधिकारी संगीन अपराधों में नामजद आरोपियों के निजी निवासों पर उनके पारिवारिक कार्यक्रमों में शामिल होते हों, उनके लिए महंगे फूलों के बुके लेकर जाते हों, उनके साथ क्लब में खेलते हों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शिरकत करते हों, उनसे नैतिकता या ईमादारी की उम्मीद की भी कैसे जा सकती है। 
जिस जिले के अधिकारी और कर्मचारी किसी न किसी लाइजनर या यूं कहें कि दलालों से घिरे रहते हों, क्या उनसे आप ये उम्मीद कर सकते हैं कि वो आपकी भ्रष्‍टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति पर रत्तीभर अमल करेंगे? 
योगी जी, क्या आपने कभी विचार किया है कि मथुरा का पुलिस प्रशासन आज तक वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में श्रद्धालुओं के साथ हुई घटना-दुर्घटनाओं पर अंकुश कैसे नहीं लगा पा रहा। आज भी बिहारीजी मंदिर में लगभग हर रोज कोई न कोई छोटी-बड़ी घटना होती है। सामान्य तौर पर यह अव्‍यवस्‍था का मामला लगता है किंतु इसके पीछे का भी मुख्‍य कारण भ्रष्‍टाचार ही है। 
एकबार सब रजिस्‍ट्रार कार्यालय में झांक लीजिए
योगी जी! आप अपने किसी दूत को एकबार सब रजिस्‍ट्रार कार्यालय भेजकर देख लीजिए, भ्रष्‍टाचार शब्द वहां छोटा लगने लगता है। एक निर्धारित धनराशि के बाद की कोई भी रजिस्‍ट्री कराना तभी संभव हो सकता है जब निर्धारित सुविधा शुल्‍क सक्षम अधिकारी तक पहुंचा दिया गया हो। 
किराएदारी का एंग्रीमेंट तक वहां बिना सुविधा शुल्‍क के नहीं बनवाया जा सकता। आउटसोर्स किए हुए कर्मचारी आने वाले हर व्‍यक्‍ति को गिद्ध दृष्‍टि से देखते हैं और किसी को नोचे बिना नहीं छोड़ते। 
काली कमाई इतनी कि अंदाज लगाना होगा मुश्‍किल 
डग्गेमार वाहन, अवैध शराब की बिक्री, हर किस्म की ड्रग्स का धंधा, मथुरा रिफाइनरी से किए जा रहे तेल के खेल आदि से होने वाली काली कमाई इतनी अधिक है कि उससे ध्‍यान हटे तो सरकार की रीति या नीतियों पर नजर पड़े। जब लक्ष्य ही एक हो तो भटकाव कैसा। शायद इसीलिए मथुरा में एक बार पोस्‍टिंग पा जाने वाला अधिकारी हो या कर्मचारी, बार-बार यहां तैनाती के प्रयास करता है। ये बात अलग है कि कुछ सफल होते हैं और कुछ नहीं, लेकिन ये तय है कि लगी हुई लत छूटती नहीं है इसलिए कोशिश भी जारी रहती है। 
कुछ अधिकारी तो ऐसे भी रहे हैं जिन्होंने पूरी नौकरी मथुरा के इर्द-गिर्द रहकर काट दी और कुछ इतने भाग्यशाली हैं कि जो सरकारी सेवा निवृत्ति के बावजूद कथित भक्ति में लीन हैं क्योंकि आपने उन्‍हें इसका सुअवर मुहैया कराया है।  
अब बात विकास प्राधिकरण की 
माननीय मुख्‍यमंत्री महोदय, हर जिले की तरह यहां भी एक विकास प्राधिकरण है। मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण के नाम वाले इस सरकारी विभाग ने ब्रजभूमि का कितना विकास किया है, यह कभी किसी आमजन से पूछ कर देखिए। वह आपको दिल खोलकर बता देगा कि विकास कितना और किसका हुआ है। चौंकाने वाली सच्‍चाई आपके सामने होगी।  
प्रशासनिक स्‍तर पर भी आप पूछ सकते हैं कि मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण अपना कोई ऐसा एक व्‍यावसायिक अथवा घरेलू प्रोजेक्ट बता दे जिसे सफल माना जा सके। अलबत्ता अधिकारी कोई असफल होकर नहीं गया। 
बिजली विभाग, लोकनिर्माण, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, जल निगम से लेकर शिक्षा और स्‍वास्‍थ्‍य विभाग तक के कारनामे 
योगी जी, राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्‍ली से मथुरा की दूरी मात्र 150 किलोमीटर है और हरियाणा तथा राजस्‍थान से इसकी सीमाएं लगती हैं, किंतु आज भी यह अयोध्‍या अथवा काशी जैसी तरक्की को तरस रहा है। 
बहुत समय नहीं हुआ जब मथुरा का डोरी निवाड़ कारोबार, चांदी के गहनों का निर्माण कार्य, साड़ी उद्योग तथा नल की टोंटी बनाने जैसे उद्योग राज्य ही नहीं देशभर में अलग स्‍थान रखते थे। आज यह उद्योग-धंधे अंतिम सांसें गिन रहे हैं क्योंकि किसी को बिजली विभाग चैन से नहीं जीने देता तो किसी को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड। जायज काम करने के लिए भी जब तक इन विभागों के अधिकारियों की नाजायज मांग पूरी न की जाए तब तक फैक्‍ट्री का संचालन संभव नहीं है। 
यही कारण है कि मथुरा में न कोई इंडस्‍ट्रियल एरिया डेवलप हुआ न इंडस्‍ट्री जबकि ताज एक्सप्रेसवे, लखनऊ एक्सप्रेसवे, नेशनल हाईवे सहित सेंट्रल, नॉर्दन एवं वेस्‍टर्न का यह अत्यंत महत्वपूर्ण रेलवे जंक्शन है और इसकी सभी जगह से सीधी कनेक्टिविटी है। 
लिखने और बताने को तो बहुत कुछ है योगी जी क्‍योंकि आपने उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने की आस जगाई है। आपको याद होगा कि पहले लोग पोस्‍टकार्ड पर लिखा करते थे- थोड़े को बहुत समझना... चिट्ठी को तार समझना। लौटती डाक से जवाब देना। 
जाहिर है कि लोग अपनी भावनाएं उड़ेलते थे, क्योंकि छोटी सी चिट्ठी के चंद शब्‍दों में सबकुछ बयां करना संभव नहीं होता था। सरकारी विभागों में व्याप्‍त भ्रष्‍टाचार की कहानी भी कुछ ऐसी है। सूची जितनी लंबी है, उतनी ही गहरी हैं भ्रष्‍टाचार की जड़ें। बेशक काम मुश्‍किल है किंतु कहीं से शुरूआत तो करनी होगी। फिर मथुरा से क्यों नहीं। 
इसी आशा और विश्‍वास के साथ... 
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

 

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