देश की शीर्ष अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट में चुनाव के दौरान मुफ्त योजनाओं की घोषणा या फिर रेवड़ी कल्चर के मुद्दे पर एक बार फिर सुनवाई हुई। इससे पहले कोर्ट ने राजनीतिक दलों से राय मांगी थी। मंगलवार को सुनवाई के दौरान सर्वोच्च अदालत ने इस मुद्दे पर बहस किए जाने को लेकर जोर दिया। कोर्ट ने कहा कि मुफ्त उपहार एक अहम मुद्दा है और फिलहाल इस पर बहस की जानी चाहिए। 
मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा कि 'मान लीजिए कि अगर केंद्र सरकार ऐसा कानून बनाती है, जिसके तहत राज्यों को मुफ्त उपहार देने पर रोक लगा दी जाती है तो क्या हम यह कह सकते हैं कि ऐसा कानून न्यायिक जांच के लिए नहीं आएगा। ऐसे में हम देश के कल्याण के लिए इस मामले को सुन रहे हैं।' 
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले कहा था कि क्या सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल, पीने के पानी तक पहुंच, शिक्षा तक पहुंच को मुफ्त सौगात माना जा सकता है? 
हमें यह परिभाषित करने की आवश्यकता है कि एक मुफ्त सौगात क्या है?
क्या हम किसानों को मुफ्त में खाद, बच्चों को मुफ्त शिक्षा के वादे को मुफ्त सौगात कह सकते हैं? सार्वजनिक धन खर्च करने का सही तरीका क्या है, इसे देखना होगा। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों की राय भी मांगी थी। 
इसके साथ ही कोर्ट ने ये भी माना था कि, राजनीतिक दलों और व्यक्तियों को संवैधानिक दायित्वों को पूरा करने के उद्देश्य से चुनावी वादे करने से नहीं रोका जा सकता। वहीं फ्री बीज यानी मुफ्त सौगात शब्द और वास्तविक कल्याणकारी योजनाओं के बीच अंतर को समझना होगा।
-Compiled by Legend News

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