नई दिल्ली। आज के समय में महिला के जीवन पर बन रही फिल्मों में सिर्फ महिलाओं का मॉडर्न, टैलेंटेड और अपनी शर्तों पर जीना ही नहीं बल्कि इसके अलावा भी बहुत कुछ दिखाया जाता है। वहीं कुछ मूवीज में या तो महिलाओं को शराब और सिगरेट पीते या फिर फेमिनिस्ट होने का फायदा उठाते हुए पेश किया जाता है। वहीं आज हम आपको एक ऐसी ही फिल्म के बारे में बताने जा रहे हैं जो ना केवल फेक फेमिनिज्म के हर मानदंड को तोड़ती है, बल्कि यह भी बताती है कि राइट टू चूज' होने का क्या मतलब है और इसके अलावा जब कोई अपनी लाइफ स्टाइल को सिंपल तरीके से नहीं जी पाता है तो उसे अपने मौलिक अधिकारों से कैसे रूबरू कराया जा सकता है। फिल्म क्रिटिक्स द्वारा शानदार रिव्यू और सुपरहिट मलयालम फिल्म 'द ग्रेट इंडियन किचन' पर आधारित 'मिसेज' में कहानी को बहुत अच्छे से पेश किया गया है और हर किरदार को उनके बेहतरीन डायलॉग्स के साथ स्क्रीन पर दिखाया गया। बॉलीवुड रीमेक 'मिसेज' के हर सीन में भारतीय महिलाओं की कहानी को नए अंदाज में दिखान की बेहतरीन कोशिश की गई है।

कहानी
जी5 की 'मिसेज' को सिर्फ दो लाइन में समेटा जा सकता है। एक न्यूली वेड कपल महिला ऋचा (सान्या मल्होत्रा) अपने पति दिवाकर (निशांत दहिया) के घर में ढलने की कोशिश करते-करते थक जाती है और आखिरकार उसे छोड़ने का फैसला करती है। वह एक स्कूल डांस टीचर बन जाती है और अपने सपने को पूरा करती है तो उसका पति दूसरी शादी कर लेता है। लेकिन, लीड किरदार इन दो परिस्थितियों के बीच की मिसेज की कहानी दिखाता है। 1 घंटे 40 मिनट की इस फिल्म की शूटिंग यूपी के एक घर में की गई है। एक-दो शॉट को छोड़कर पूरी फिल्म को घर के अंदर ही शूट किया गया है और उसमें भी 90% किचन के सीन हैं।

फिल्म का हर शॉट एक खास कहानी बयां करता है और एक भी सीन बोरिंग नहीं है। पहले 15-20 मिनट में ही एक मिडिल क्लास पत्नी और दुल्हन को शादी के जश्न के खत्म होने और रिश्तेदारों के वापस चले जाने के बाद किचन और पूरे घर को संभालने के लिए कहा जाता है। सास जो ना केवल उसे टीजर की जॉब छोड़ घर की जिम्मेदार संभालने को कहती है, बल्कि पूरे घर के नियम भी नई दुल्हन को अपनाने को बोलती है। वहीं ससुर और पति, बेचारी महिला की मदद करने के बजाय हर दिन उसकी लाइफ को और भी मुश्किल बनाते दिखाई दे रहे हैं। इस फिल्म से किसी को कोई गलत मैसेज नहीं दिया गया, इसमें घरेलू हिंसा, मैरिटल अफेयर से जुड़े कोई भी बिना मतलब के सीन्स नहीं हैं, केवल मेंटल टॉर्चर, सपनों की हत्या, प्यार भरे रिश्ते को बर्बाद करने जैसे मामले को पेश किया गया है।

घर की अकेली महिला को धूल झाड़ते, सब्ज़ियां धोते, काटते, छीलते, चटनी बनाते, तड़का लगाते, चपाती बेलते, मीट को मैरीनेट करते, फिर खाना परोसते, मेज साफ करते और खाना परोसते हुए, फिर रसोई की सफाई करते और घर को व्यवस्थित करते हुए देखा जाता है ताकि वह शाम के नाश्ते, दोपहर के खाने और डिनर बना सके। बहुत कुछ छोटी-छोटी घटनाएं दर्शकों के सामने बारीकी से पेश की है, जिन्हें पारिवारिक परंपराओं के नाम पर इन सबको हउआ बनाया हुआ है और इनमें से कई सीन्स पितृसत्ता की अकड़ निकालती है जबकि लीड किरदार सुन्न और टूटा हुआ दिखाई देता है। इसके अलावा, एक स्त्री रोग विशेषज्ञ की पत्नी होने के बाद भी, ऋचा को मासिक धर्म के दौरान ना केवल अलग-थलग किया जाता है, बल्कि जब वह इस बारे में मेडिकल स्पेशलिस्ट के सामने अपने हेल्थ इश्यू के बारे में बात करती है तो उसे टल दिया जाता है। फिल्म मिडिल क्लास परिवार की महिलाओं की पीड़ा को उजागर करती है और साथ ही इन सबसे बाहर आने का एक रास्ता भी दिखाती है।

लेखन और निर्देशन
'मिसेज' की कहानी ही इस फिल्म की खासियत है। इस फिल्म का इमोशनल ड्रामा और साथ ही बेहतरीन लेखन ने इस फिल्म के रीमेक को भी धमाकेदार बनाने क कोशिश की है। फिल्म में डायलॉग्स का बैकग्राउंड म्यूजिक और शानदार एक्टिंग के साथ अच्छा तालमेल देखने को मिला है, जिससे ऋचा की पीड़ा का एहसास किसी को भी हो सकता है। खुशी से लेकर उदास होने तक, सेट डायरेक्शन और डिजाइन ने फिल्म की टोन को अच्छी तरह से सेट किया है और ऑर्गेनिक तरीके से क्लाइमेक्स तक कहानी को पहुंचाया है। 'मिसेज' का निर्देशन बहुत ही जबरदस्त तरीके से किया गया है और अधिकांश भारतीय डिस्टर्ब मैरिज की परेशानियों को पेश किया है।

कई सीन्स इतने खूबसूरती से निर्देशित और प्रस्तुत किए गए हैं जो बदलते समय पर आपका ध्यान खींचता है, जिन्हें आप नजरअंदाज नहीं कर पाएंगे। वहीं आधुनिकता के बावजूद परंपराओं के नाम पर पितृसत्ता को गलत तरीके से दिखाने पर भी विरोध जताया है। इसके अलावा, फिल्म निर्माता ने परिवार की इस दुस्साहस को सही ढंग से पेश किया है कि महिलाओं से पूरी रसोई संभालने, बड़ों की आज्ञा मानने, अपने पति को खुश करना, सभी घरेलू काम में निपुण होना, रीति-रिवाजों के अनुसार मेहमानों का सम्मान करने की अपेक्षा की जाती है, लेकिन उसके अपने विचार, राय या यहां तक ​​कि करियर के लिए कोई नहीं सोचता है।

कास्ट की एक्टिंग
फिल्म पूरी तरह से सान्या मल्होत्रा ​​के किरदार पर है, उन्हें अपने ऑन-स्क्रीन पति निशांत दहिया और ससुर कंवलजीत सिंह का साथ मिलता है। तीनों ने सराहनीय काम किया है तो वहीं फिल्म में दंगल गर्ल का काम तारीफ के लायक है। अपनी हताशा को चिल्लाए बिना या अपनी आंखों से बिना आंसू बहाए, एक्ट्रेस ने ये करिदार निभाया है जो शादी के बाद दुखी हो जाती है। जिस तरह से सान्या ने ऋचा का किरदार निभाया है, वह हमें अपने जीवन के कई घरेलू उदाहरणों की याद दिलाता है। दो सीन मुझे सिर्फ सान्या की वजह से खास लगे। पहला, जब वह भरा हुआ सिंक साफ करते समय मांस का टुकड़ा अपने हाथों में फंस जाने पर दुखी हो जाती है। दूसरा, जब वह करवा चौथ की रात अपने अंदर चल रहे इमोशनल रोलर कोस्टर को कंट्रोल करते हुए सावी से यह पुष्टि करवाना चाहती है कि वह भी परिवार का एक हिस्सा है।

फिल्म कैसी है
रूढ़िवादी बने बिना नारीवाद पर आधारित एक बेहतरीन कहानी कैसे बुनी जाएगी। यह समझने के लिए यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए। सान्या मल्होत्रा ​​और आरती कदव की फिल्म पितृसत्तात्मक समाज और उसके प्रवर्तकों के मुंह पर एक तमाचा है। अब समय आ गया है कि ऐसी शानदार कहानियों को न केवल देखा जाए बल्कि उन पर चर्चा भी की जाए। यह फिल्म यह समझने के लिए भी देखें कि मेलबर्न फिल्म फेस्टिवल में फिल्म को स्टैंडिंग ओवेशन क्यों मिला और IFFI गोवा और MAMI में इसका प्रीमियर क्यों हुआ। इंडिया टीवी 'मिसेज' को चार स्टार देती है। 'मिसेज' इस शुक्रवार को जी 5 पर रिलीज होगी।

- Legend News

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