सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दुष्कर्म के मामलों में इलाहाबाद हाईकोर्ट की हालिया आपत्तिजनक टिप्पणियों पर सख्त रुख अपनाया। कोर्ट ने कहा कि ऐसी टिप्पणियां नहीं की जानी चाहिए थीं। ऐसा कहा ही क्यों गया? शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के हाल के एक आदेश पर दुख जताया, जिसमें कोर्ट ने एक छात्रा से दुष्कर्म के आरोपी को जमानत दे दी और कहा कि महिला ने खुद ही मुसीबत को न्योता दिया। 
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ ने कहा, 'अब एक अन्य न्यायाधीश ने एक और आदेश दिया है। जमानत दी जा सकती है... लेकिन, यह कैसी बात हुई कि उसने खुद ही मुसीबत को आमंत्रित किया? ऐसी बातें कहते समय सावधानी बरतनी चाहिए। खासकर न्यायाधीशों को।' सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक अन्य आदेश के खिलाफ स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई के दौरान आई। इसमें कहा गया था कि सिर्फ छाती पकड़ने और सलवार का नाड़ा खींचने को दुष्कर्म नहीं माना जा सकता। शीर्ष अदालत ने पहले ही इस विवादास्पद आदेश पर रोक लगा दी थी। 
इलाहाबाद हाईकोर्ट की हालिया टिप्पणी कब सामने आई?
दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 10 अप्रैल को दुष्कर्म के आरोपी को जमानत देते हुए कहा था कि दोनों पक्ष बालिग हैं और पीड़िता एक शिक्षित युवती है। ऐसे में उन्हें अपने फैसलों के कानूनी व नैतिक परिणाम समझने चाहिए थे। यदि पीड़ित के आरोप सही मान भी लें तो यह कहा जा सकता है कि उसने स्वयं परेशानी को आमंत्रित किया है। वह खुद घटना के लिए जिम्मेदार है। यह टिप्पणी करते हुए न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह की एकल पीठ ने निश्चल चांडक की जमानत अर्जी स्वीकार कर ली थी। 
कोर्ट ने कहा था कि पीड़िता ने स्वयं एफआईआर स्वीकार किया है कि वह स्वेच्छा से दिल्ली के एक बार में अपनी तीन महिला मित्रों के साथ गई, जहां उसने शराब पी और वह नशे में आ गई। बार में वह सुबह 3 बजे तक रुकी रही। इस दौरान आरोपी ने उसे अपने घर चलने को कहा। नशे की हालत में सहारे की आवश्यकता होने पर वह उसके साथ जाने को तैयार हो गई। रास्ते में आरोपी उसे एक फ्लैट ले गया और घटना को अंजाम दिया।
पुराने अन्य मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्या कहा था?
इससे पहले 17 मार्च को एक अन्य मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि पीड़िता को छूने या कपड़े उतारने की कोशिश को दुष्कर्म का प्रयास नहीं माना जा सकता। इस टिप्पणी के साथ न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की कोर्ट ने कासगंज के आरोपियों के खिलाफ ट्रायल कोर्ट से जारी सम्मन को रद्द कर दिया था। कोर्ट ने यौन हमले की धाराओं के तहत पुन: आदेश पारित करने का आदेश दिया था।
झूठे आरोपों में फंसाने की दलील दी थी
मामले में याची के अधिवक्ता ने आरोपियों को झूठा फंसाने की दलील देते हुए कहा था कि दुष्कर्म के प्रयास की धाराओं में समन जारी किया गया है, जबकि यह आरोपों के अनुरूप नहीं है। समन जारी करते वक्त ट्रायल कोर्ट ने न्यायिक विवेक का प्रयोग नहीं किया। इस पर हाईकोर्ट ने आंशिक अपील स्वीकार करते हुए कहा कि अभियुक्तों ने पीड़िता की छाती को पकड़ लिया, नाड़ा तोड़ दिया और पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की, कुछ लोगों के हस्तक्षेप पर वे भाग गए... सिर्फ इतने तथ्य से दुष्कर्म के प्रयास का मामला नहीं बनता। 
क्या है मामला?
मामला कासगंज के पटियाली थाना क्षेत्र का है। चार साल पहले पीड़िता की मां ने 12 जनवरी 2022 को ट्रायल कोर्ट में शिकायत दर्ज कराई थी। आरोप लगाया कि 10 नवंबर 2021 को वह अपनी 14 साल की बेटी के साथ पटियाली में देवरानी के घर गई थी। उसी दिन शाम को लौटते वक्त गांव के ही पवन, आकाश और अशोक मिल गए। पवन ने बेटी को अपनी बाइक पर बैठाकर घर छोड़ने की बात कही। मां ने उस पर भरोसा करते हुए बाइक पर बैठा दिया। रास्ते में पवन और आकाश ने लड़की को पकड़ लिया और उसके कपड़े उतारने का प्रयास करते हुए पुलिया के नीचे खींचने लगे। लड़की की चीख सुनकर ट्रैक्टर से गुजर रहे लोग मौके पर पहुंचे, जिन्हें तमंचा दिखाकर आरोपी धमकी देते हुए फरार हो गए। शिकायत करने आई पीड़िता की मां को भी आरोपी पवन ने गाली-गलौज करते हुए धमकाया। पुलिस के केस नहीं लिखने पर मां ने ट्रायल कोर्ट में अर्जी दी। ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ समन जारी किया, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। 
-Legend News

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