रिपोर्ट : LegendNews
अर्श से फर्श पर शंकर सेठ: आधा दर्जन प्रोजेक्ट खटाई में, दूसरे कई सेठों की साख भी दांव पर
शंकर सेठ के नाम से पहचाना जाने वाला जो शिवशंकर अग्रवाल कुछ महीनों पहले तक अपने एक इशारे से बोरी भर-भरकर नोट इकट्ठे कर लिया करता था, जिसके प्रोजेक्ट लॉन्च होने के साथ सफलता की गारंटी बन गए थे, और जो मनमानी कीमत पर अपनी जमीनों का सौदा किया करता था, वही शंकर सेठ आज बर्बादी के कगार पर आ खड़ा हुआ है।
वृंदावन के छटीकरा रोड पर स्थित डालमिया बाग से रातों-रात 454 हरे पेड़ कटवाना उसे इतना भारी पड़ जाएगा, इसकी कल्पना उसने कभी सपने में भी नहीं की होगी। अचानक अर्श से फर्श तक जा पहुंचा शंकर सेठ आज अपने उन आधा दर्जन रियल एस्टेट प्रोजेक्ट को बचाने में लगा है जो मथुरा से वृंदावन और वृंदावन से नेशनल हाईवे तक पर प्रस्तावित हैं।
गले की हड्डी बना डालमिया बाग
दरअसल, करीब 37 एकड़ में फैले बाग का डालमिया परिवार से एमओयू साइन कराने के बाद राधा माधव डेवलपर्स नामक फर्म के हिस्सेदारों ने बिना किसी इजाजत के जिस तरह मनमानी की, उसने एक ओर जहां मथुरा के समूचे प्रशासन पर गहरा सवालिया निशान लगा दिया वहीं दूसरी ओर मोदी और योगी सरकार की मंशा को भी ताक पर रख दिया।
लगभग तीन सौ करोड़ रुपए के इस सौदे की आड़ में शंकर सेठ तथा राधा माधव डेवलपर्स के दूसरे हिस्सेदारों ने एक अनुमान के अनुसार दो हजार करोड़ रुपए जुटा लिए। बताया जाता है कि राधा माधव डेवलपर्स के हिस्सेदारों में शंकर सेठ के बेटे का नाम है।
बहरहाल, अब स्थिति यह है कि मामला एनजीटी के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट भी जा पहुंचा है। सुप्रीम कोर्ट की सख्ती से साफ जाहिर है कि डालमिया बाग पर प्रस्तावित गुरू कृपा तपोवन कॉलोनी का प्रोजेक्ट तो खटाई में पड़ ही चुका है, शंकर सेठ के अन्य आधा दर्जन रियल एस्टेट प्रोजेक्ट भी पूरे होते नजर नहीं आ रहे। ऊपर से निवेशकों ने अपना पैसा लौटाने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया है।
अवैध लेनदेन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में PIL दायर
उधर सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण जनहित याचिका (PIL) दायर की गई है। इस याचिका में मथुरा के पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील 'ताज ट्रेपेज़ियम ज़ोन' से 454 पवित्र वृक्षों की अवैध कटाई और 500 करोड़ रुपए से अधिक के धोखाधड़ीपूर्ण लेन-देन के गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
याचिकाकर्ता अधिवक्ता नरेंद्र कुमार गोस्वामी ने दलील दी है कि यह अवैध गतिविधियां न केवल वन संरक्षण अधिनियम 1980 और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 जैसे पर्यावरणीय कानूनों का उल्लंघन करती हैं बल्कि वृंदावन की धार्मिक एवं सांस्कृतिक धरोहर का भी अपमान करती हैं।
याचिका में यह भी कहा गया है कि "गुरुकृपा तपोवन कॉलोनी" नामक रियल एस्टेट प्रोजेक्ट के अंतर्गत धोखाधड़ीपूर्ण कार्य किए गए हैं। इनमें अवैध "कच्ची पर्चियों" के जरिए 500 करोड़ रुपए से अधिक का लेन-देन हुआ है। याचिकाकर्ता ने इन वित्तीय अनियमितताओं की जांच प्रवर्तन निदेशालय (ED) से कराने और पूरे क्षेत्र में सभी अवैध निर्माण कार्यों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है।
चूंकि एक अन्य याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गत दिनों राधा माधव डेवलपर्स के साथ हुए डालमिया परिवार के इस सौदे को तरजीह न देकर हरे वृक्षों के अवैध कटान को बड़ा मुद्दा माना था और साफ कहा था कि डालमिया परिवार मात्र एमओयू साइन करके अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता, उससे साफ संकेत मिलता है कि अधिवक्ता नरेंद्र कुमार गोस्वामी की PIL पर सुप्रीम कोर्ट कोई कड़ा फैसला सुना सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने बाग के मालिक डालमिया परिवार पर करोड़ों रुपए का जुर्माना ठोकते हुए निर्माण कार्य की भी इजाजत नहीं दी और मथुरा पुलिस से शंकर सेठ के बयान लेने को कहा ताकि ये पता लग सके कि आखिर इस पूरे प्रकरण में शंकर सेठ किस हैसियत से शामिल था तथा इसमें उसे सहयोग करने वाले कौन-कौन लोग थे।
जिला स्तर पर पुलिस-प्रशासन में गहरी पैठ रखने वाले डालमिया बाग के कथित हिस्सेदार सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख से पूरी तरह हिल गए हैं क्योंकि यदि सुप्रीम कोर्ट ने अवैध लेन-देन की जांच के आदेश दे दिए तो उसमें कई ऐसे सफेदपोश भूमाफिया भी बेनकाब होंगे जो अब तक अपना नाम कानूनी परिधि से बाहर रखने में सफल रहे हैं।
राधा माधव डेवलपर्स से जुड़े सूत्र ही बताते हैं कि डालमिया बाग के हिस्सेदार अब सारा ठीकरा एक-दूसरे के सिर तो फोड़ ही रहे हैं, साथ ही इस जुगाड़ में हैं कि किसी तरह अपना-अपना फंसा हुआ पैसा निकाल लिया जाए।
बताया जाता है कि सबसे बड़ी परेशानी शंकर सेठ के सामने आ खड़ी हुई है क्योंकि वह न सिर्फ गुरू कृपा तपोवन का मुखौटा है बल्कि बाजार से पैसा उठाने में भी उसकी बड़ी भूमिका रही है।
ऐसे में निवेशक अपना पैसा लौटाने के लिए उसी पर दबाव बना रहे हैं किंतु समस्या यह है कि उसके पास आने वाले पैसे के स्त्रोत पूरी तरह बंद हो गए हैं। शंकर सेठ के नाम पर अब कोई फूटी कौड़ी देने को तैयार नहीं है।
हिस्सेदारों में भी तकरार होने की खबरें
यह भी पता लगा है कि फंसा हुआ पैसा निकालने तथा निवेशकों का पैसा लौटाने के लिए हिस्सेदारों में तकरार शुरू हो चुकी है। मीडिया में बात लीक न हो और साझे की हड़िया चौराहे पर न फूटे इसलिए अब बाहर जाकर बैठकें की जा रही हैं। पहले जहां सब मिलकर कानूनी पचड़े से बचने के रास्ते खोजने की बात किया करते थे, वहीं अब अपना-अपना बचाव करने में लगे हैं।
सूत्र बताते हैं कि गत माह एक हिस्सेदार तो अपना बचाव करने की जुगत में योगी जी से मुलाकात करने के लिए तीन दिन लखनऊ में पड़े रहे लेकिन सारा मामला योगी जी के संज्ञान में होने के कारण उन्होंने मुलाकात का समय दिया ही नहीं। एक सचिव से मिलने को कह दिया, और उस सचिव को पहले से समझा दिया कि किस तरह हेंडिल करना है। कुल मिलाकर यह नामचीन हिस्सेदार बड़े बेआबरू होकर लौटने को मजबूर हो गए, वो भी बिना कोई आश्वासन प्राप्त किए।
ऐसे में उनके सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि कल तक जिनकी आंखों के इशारे से काम हो जाया करते थे, केंद्र से लेकर यूपी तक की सत्ता के गलियारों में जिनके रिश्तों की गूंज सुनाई देती थी, आज उनकी साख को इस कदर बट्टा लगा है कि कोई सीधे मुंह बात करने को राजी नहीं है।
मोटा माल कमाने के चक्कर में एमओयू साइन करके जो सैकड़ों करोड़ रुपया दे दिया, फिलहाल वो तो फंसा ही हुआ है ऊपर से निवेशक गले की फांस बन गए हैं। सवाल यह है कि उन्हें ऐसी सूरत में कब तक टाला जा सकता है।
रियल एस्टेट के पूरे कारोबार को ग्रहण
योगीराज भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा और वृंदावन तथा गोवर्धन सहित सभी प्रमुख धार्मिक स्थलों पर पिछले कुछ वर्षों से जमीन के दाम आसमान छू रहे थे। सामान्य आदमी तो इन स्थानों पर जमीन का छोटा सा टुकड़ा तक खरीदने की हैसियत खो चुका था, लेकिन डालमिया बाग कांड के बाद यहां रियल एस्टेट के करोबार को जैसे ग्रहण सा लग गया है। निवेशकों का भरोसा बिल्डर्स और कॉलोनाइजर्स पर से पूरी तरह उठ चुका है। वो अब यूं ही पैसा लगाने को तैयार नहीं हैं, जिस कारण पैसे का लेन-देन नहीं हो पा रहा। बेशकीमती जमीनों के सौदे अधर में लटके हुए हैं। भरोसा टूटने के कारण रंजिशें पनपने का खतरा बढ़ गया है।
इतना सबकुछ तो तब है जबकि अभी शासन-प्रशासन स्तर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। जिला स्तर पर तो डालमिया बाग के आरोपियों को भरपूर सहयोग दिया गया लेकिन मामला उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में जाने के कारण बिगड़ गया।
इसी महीने और फिर अगले महीने भी विभिन्न न्यायालयों में सुनवाई होनी है। रिपोर्ट सौंपी जानी है। सुप्रीम कोर्ट के तेवर जो संकेत दे रहे हैं, वो भूमाफिया के लिए शुभ नजर नहीं आते। तय है कि जो भूमाफिया पेड़ काटने को बहुत हलके में ले रहा था और जो सीना ठोक कर कहता फिरता था कि इधर मीडिया मैनेज हुआ और उधर सब काम पहले की तरह होने लगेंगे वही अब मिट्टी में मिलने के डर से भूमिगत होने पर मजबूर है।
बाकी का हश्र क्या होगा, यह भले ही भविष्य के गर्भ में हो लेकिन जिस शंकर सेठ को भूमाफिया ने अपना मुखौटा बनाकर पेश किया और जिसके चेहरे पर हजारों करोड़ रुपए जुटा लिए उसका खेल जरूर खत्म होता साफ दिख रहा है। अर्श से फर्श तक का उसका सफर शुरू हो चुका है, अब पैरों तले की जमीन खिसकना भर बाकी है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
Recent Comments