रिपोर्ट : LegendNews
दिव्यांगों का मजाक उड़ाने पर समय रैना मुश्किल में, सुप्रीम कोर्ट ने तलब किया
नई दिल्ली। मशहूर यूट्यूबर और स्टैंडअप कॉमेडियन समय रैना को सुप्रीम कोर्ट ने पांच अन्य इन्फ्लुएंसर्स के साथ पेश होने के लिए कहा है। एक एनजीओ की याचिका पर यह निर्देश दिया गया है। याचिका पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने दिव्यांग व्यक्तियों का मजाक उड़ाया है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई पुलिस आयुक्त से कहा कि वह इन इन्फ्लुएंसर्स को नोटिस दें ताकि वह अदालत में पेश हो सके। अन्यथा इनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।
‘स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी’ नामक दुर्लभ बीमारी का बनाया मजाक
‘इंडियाज गॉट लैटेंट’ के होस्ट समय रैना पर एनजीओ ने आरोप लगाया है कि उन्होंने अपने शो में ‘स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी’ नामक दुर्लभ बीमारी से पीड़ित लोगों का मजाक उड़ाया है। इस आरोप के बाद जस्टिस सूर्यकांत और एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने मुंबई के पुलिस आयुक्त से कहा कि वह पांचों इन्फ्लुएंसर्स को नोटिस दें और वह अदालत में पेश हों। पीठ ने यह भी कहा कि अगर वह अदालत में उपस्थित नहीं होते हैं तो उनके ऊपर दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।
अटॉर्नी जनरल से पीठ ने सहायता मांगी
पीठ ने एनजीओ 'क्योर एसएमए फाउंडेशन ऑफ इंडिया' की जनहित याचिका पर अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की सहायता भी मांगी है। पीठ ने यह सहायता दिव्यांग लोगों और दुर्लभ विकारों से पीड़ित व्यक्तियों से संबंधित सोशल मीडिया कंटेंट को नियंत्रित करने के लिए मांगी है। साथ ही पीठ ने ऐसे लोगों का मजाक उड़ाने वाले इन्फ्लुएंसर्स को हानिकारक और मनोबल को नुकसान पहुंचाने वाला करार दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ गंभीर सुधारात्मक और दंडात्मक कार्रवाई की जरूरत है ताकि ऐसी चीजें दोबारा न हों।
ऑनलाइन कंटेंट के रेगुलेशन पर किया विचार
पीठ ने एनजीओ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह से कहा, ‘यह बहुत ही नुकसानदायक और मनोबल को गिराने वाला है। ऐसे कानून हैं जो दिव्यांगजनों को मुख्यधारा में लाने की कोशिश करते हैं और एक घटना से पूरा प्रयास खत्म हो जाता है। आपको कानून के भीतर कुछ सुधारात्मक और दंडात्मक कार्रवाई के बारे में सोचना चाहिए।’
पीठ ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की आड़ में किसी को भी अपमानित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। पीठ ने दिव्यांगों से संबंधित सोशल मीडिया कंटेंट पर दिशा-निर्देश बनाने पर विचार किया। एनजीओ ने मौजूदा कानूनी ढांचे में कमियों का हवाला दिया और पीठ से ऑनलाइन कंटेंट पर दिशा-निर्देश तैयार करने का आग्रह भी किया।
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