रिपोर्ट : LegendNews
रेलवे ने तो कब्जा मुक्त करा ली अपनी भूमि, लेकिन अमरनाथ विद्या आश्रम वाजपेयी बंधुओं के कब्जे से कब होगा मुक्त?
शहर ही नहीं, प्रदेश की नामचीन आवासीय शिक्षण संस्था 'अमरनाथ विद्या आश्रम' के एक हिस्से से कल रेलवे ने तो अवैध निर्माण ध्वस्त कर अपनी जमीन उनके कब्जे से मुक्त करा ली किंतु बड़ा सवाल यह है कि ये शिक्षण संस्थान वाजपेयी बंधुओं के कब्जे से कब तक मुक्त हो सकेगा, और हो सकेगा भी या नहीं।
दरअसल, भूतेश्वर रेलवे स्टेशन से मथुरा जंक्शन तक इन दिनों रेलवे अपनी चौथी लाइन बिछाने का कार्य कर रहा है लेकिन इस कार्य में कैलाश नगर तथा अमरनाथ विद्या आश्रम द्वारा किया गया अतिक्रमण बाधा बन रहा था।
रेलवे अधिकारियों ने इस अतिक्रमण को हटाने के लिए कई बार नोटिस जारी किए, और अमरनाथ विद्या आश्रम को तो अंतिम नोटिस इसी महीने की 17 तारीख को दिया गया किंतु अमरनाथ विद्या आश्रम के प्रबंधतंत्र ने रेलवे के नोटिस का जवाब तक देना जरूरी नहीं समझा। रेलवे ने अपनी जमीन पर अवैध रूप से बनी अमरनाथ विद्या आश्रम की चारदीवारी तथा गेट को ध्वस्त करने के लिए पहले उनका चिन्हांकन भी किया लेकिन अमरनाथ विद्या आश्रम का प्रबंधतंत्र न कुछ देखने को तैयार था और न सुनने को। आखिर रेलवे ने कल सुरक्षाबलों के सहयोग से अमरनाथ विद्या आश्रम का अवैध निर्माण ध्वस्त कर दिया, जिस पर प्रबंधतंत्र ने जमकर हंगामा किया।
क्या कहता है अमरनाथ विद्या आश्रम का प्रबंधतंत्र
इस संबध में पूछे जाने पर अमरनाथ विद्या आश्रम के प्रधानाचार्य अरुण वाजपेयी ने अपने लिखित जवाब में बताया कि बिना किसी पूर्व सूचना के रेलवे प्रशासन की टीम ने बुल्डोजर लेकर शिक्षण संस्था के मुख्य मार्ग की बाउंड्रीवाल को ध्वस्त करना शुरु कर दिया। अरुण वाजपेयी के अनुसार, विद्यालय प्रबंधन ने रेलवे के अधिकारियों से वार्ता करनी चाही तो उन्होंने किसी भी तरह की वार्ता से इंकार कर दिया। यह अनाधिकृत कार्रवाई उस समय की गई, जब अमरनाथ विद्या आश्रम में प्ले ग्रुप से लेकर 12वीं तक के विद्यार्थी शिक्षण कार्य कर रहे थे, जबकि अमरनाथ डिग्री कालेज में छात्राएं विश्वविद्यालय की परीक्षाएं दे रही थीं।
रेल प्रशासन ने बाउंड्रीवाल को ध्वस्त करने की कोई भी सूचना नहीं दी। यही नहीं, अचानक शिक्षण संस्थान की विद्युत आपूर्ति बाधित कर दी गयी जिससे परीक्षा दे रहीं छात्राओं के कक्ष में अंधेरा छा गया। विद्यालय प्रबंधन ने रेल अधिकारियों से कहा कि रेलवे पथ के निर्माण में वो रेल प्रशासन के साथ हैं। बच्चों की परीक्षाएं सम्पन्न हो जाने दीजिए, लेकिन इसके बावजूद रेलवे प्रशासन ने बाउंड्रीवाल को ध्वस्त करने के साथ-साथ तमाम लगे वृक्षों को उजाड़ दिया गया। नगर निगम की स्ट्रीट लाइटें भी तोड़ दी गयीं। मना करने पर रेलवे निर्माण विभाग के सहायक अधिशासी अभियंता राघवेन्द्र गुप्ता और उनके साथ आए अधिकारी कर्मचारियों ने हाथापाई और मारपीट कर दी।
अमरनाथ विद्या आश्रम ने दावा किया कि इससे पूर्व विद्यालय प्रबंधन ने जिलाधिकारी चन्द्र प्रकाश सिंह के समक्ष पूरा प्रकरण रखते हुए कहा था कि रेल प्रशासन के कार्य में विद्यालय की बाउंड्री से कोई भी अवरोध उत्पन्न नहीं हो रहा है, लेकिन रेलवे के अधिकारी रेल लाइन का काम न करके जबरन बाउंड्रीवाल को तोड़ने पर आमादा थे। सिटी मजिस्ट्रेट राकेश कुमार ने भी रेल अधिकारियों से बाउंड्रीवाल को फिलहाल छोड़कर अपना काम करने के लिए फोन किया, लेकिन रेलवे के अधिकारियों ने उनकी भी नहीं सुनीं। बाउंड्रीवाल तोड़ दिए जाने से बाहरी तत्वों का विद्यालय में प्रवेश प्रारंभ हो गया है। विद्यालय प्रशासन व बच्चों के साथ कभी भी कोई बड़ी घटना घट सकती है। विद्यालय में अत्यंत दहशत का वातावरण है।
प्रधानाचार्य अरुण वाजपेयी को जब रेलवे के नोटिस की प्रति भेजकर उसके संदर्भ में जानकारी मांगी गई तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया जबकि अमरनाथ विद्या आश्रम कह रहा है कि उन्हें कोई नोटिस दिए बिना रेलवे ने ध्वस्तीकरण की कार्रवाई शुरू कर दी।
मथुरा-वृंदावन रेलवे लाइन पर भी बना रखा है गेट
अमरनाथ विद्या आश्रम ने अपना एक गेट मथुरा-वृंदावन रेलवे लाइन की ओर भी बना रखा है। चूंकि यह रेलवे ट्रैक फिलहाल बंद पड़ा है इसलिए संभवत: इसके बारे में अभी कोई बात नहीं हो रही। इस गेट के संबंध में भी फोटो भेजकर अरुण वाजपेयी से जानकारी मांगी गई लेकिन समाचार लिखे जाने तक उनका कोई जवाब नहीं आया।
ट्रस्ट के साथ भी 3 दशक से चल रहा है अमरनाथ विद्या आश्रम का विवाद
सच तो यह है कि अमरनाथ विद्या आश्रम का सिर्फ रेलवे से ही नहीं संस्थान के मूल ट्रस्टियों से भी विवाद चल रहा है जो आज तक एसडीएम (सदर) की कोर्ट में लंबित है।
हालांकि इसकी शुरूआत तीन दशक पहले तब हुई थी जब इस विद्यालय के प्रथम प्रधानाचार्य आनंद मोहन वाजपेयी ने एक नए ट्रस्ट का गठन कर विद्यालय पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। संस्थान के मूल ट्रस्टियों में से एक धीरेन्द्रनाथ भार्गव का कहना है कि वाजपेयी परिवार ने विद्यालय पर अपना कब्जा दिखाने के उद्देश्य से एक ओर जहां तमाम दानदाताओं की ओर से कराए गए निर्माण कार्य के सबूत मिटा दिए वहीं दूसरी ओर विद्यालय में गेट के ठीक सामने पार्क में लगी उन स्वर्गीय 'द्वारिकानाथ भार्गव' की मूर्ति भी नष्ट कर दी जिन्होंने विद्यालय की स्थापना की थी।
ट्रस्टी धीरेन्द्रनाथ भार्गव द्वारा दी गई लिखित जानकारी के अनुसार अमरनाथ विद्या आश्रम को लेकर एक लम्बे समय से वाजपेयी बंधुओं द्वारा भ्रामक और गलत जानकारियाँ देकर जनता को गुमराह किया जा रहा है जबकि सच्चाई यह है कि अमरनाथ विद्या आश्रम की स्थापना सन् 1961 में स्वतंत्रता सेनानी और अधिवक्ता श्री द्वारिका नाथ भार्गव ने स्वर्गीय अमरनाथ भार्गव की स्मृति में एक ट्रस्ट के जरिए की थी।
आनन्द मोहन वाजपेयी को तब इस शिक्षण संस्था में बतौर प्रधानाध्यापक नियुक्त किया गया था। सन् 1990 तक आनन्द मोहन वाजपेयी इस शिक्षण संस्था के प्रधानाध्यापक रहे। उसके बाद ट्रस्ट ने उन्हें स्कूल का निदेशक घोषित कर दिया लेकिन उन्होंने संस्था के ट्रस्टियों का भरोसा तोड़कर एक नया फर्जी ट्रस्ट रजिस्टर्ड करवा लिया और पूरी संस्था पर अपने भाई-भतीजों सहित काबिज हो गए।
आनन्द मोहन वाजपेयी ने खुद को अमरनाथ विद्या आश्रम का आजीवन ट्रस्टी दर्शाते हुए सन् 1995 में ट्रस्ट का नवीनीकरण करा लिया। जब इस बात की जानकारी मूल ट्रस्टियों को हुई तो उन्होंने उपनिबंधक फर्म, सोसायटी एवं चिट्स आगरा के यहाँ उनके इस कृत्य को चुनौती दी। जिसके उपरांत उपनिबंधक ने माना कि आनन्द मोहन वाजपेयी न तो ट्रस्ट के लिए गठित कार्यकारिणी के चुनाव सम्बन्धी कोई रजिस्टर प्रस्तुत कर सके और न ही ट्रस्ट की वैधता साबित कर सके।
उपनिबंधक आगरा द्वारा 2 जून 1995 को दिए गए अपने आदेश में स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि आनन्द मोहन वाजपेयी की ओर से प्रस्तुत 30 अक्टूबर 1993 को दर्शाये गए कार्यकारिणी के चुनावों की वैधता संदिग्ध है और 1988 में हुआ चुनाव ही अंतिम चुनाव था। धीरेन्द्रनाथ भार्गव के अनुसार अमरनाथ विद्या आश्रम पर मूल रूप से श्री द्वारिका नाथ भार्गव द्वारा गठित ट्रस्ट का ही अधिकार है और वही इसके संचालन का हकदार है।
ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि रेलवे ने तो अमरनाथ विद्या आश्रम का अवैध निर्माण ध्वस्त कर अपनी जमीन उसके कब्जे से मुक्त करा ली किंतु क्या स्वतंत्रता सेनानी और अधिवक्ता द्वारिका नाथ भार्गव द्वारा स्थापित यह शिक्षण संस्थान कभी वाजपेयी बंधुओं के कब्जे से मुक्त हो पाएगा क्योंकि संस्थान पर काबिज वाजपेयी बंधु एक ओर जहां पुलिस-प्रशासन में ऊंची पहुंच होने का दम भरते आए हैं वहीं दूसरी ओर सत्ता के गलियारों में भी गहरी पैठ होने का दावा करते हैं।
उनके इस दावे में दम इसलिए नजर आता है कि रेलवे जैसे विभाग को उनसे अपनी जमीन कब्जा मुक्त कराने में वर्षों एड़ियां रगड़नी पड़ गईं, और यदि अब भी रेलवे की चौथी लाइन नहीं पड़ रही होती तो ये काम संभव नहीं होता।
रहा सवाल शिक्षण संस्थान के मूल ट्रस्टियों का तो वो आज तक वाजपेयी बंधुओं के बिछाए कानूनी जाल में फंसे हुए हैं और कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने पर मजबूर हैं।
-Legend News
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