केंद्र सरकार सेंट्रल टैक्स में राज्यों की हिस्सेदारी में कटौती कर सकती है। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से यह दावा किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार वित्त आयोग को इसकी सिफारिश करेगी। वित्त आयोग टैक्स शेयरिंग और केंद्र तथा राज्यों के बीच वित्तीय संबंधों के बारे में सिफारिश करता है। अरविंद पनगढ़िया की अगुवाई वाला यह आयोग 31 अक्टूबर तक अपनी रिपोर्ट देगा जिसे 2026-27 में लागू किया जाएगा। आयोग की सिफारिशें बाध्यकारी होती हैं। 
एक सूत्र ने कहा कि केंद्र सरकार केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी 41 फीसदी से घटाकर 40 फीसदी करने की सिफारिश कर सकती है। माना जा रहा है कि कैबिनेट मार्च के अंत तक इस प्रस्ताव को मंजूरी दे सकती है। उसके बाद इसे वित्त आयोग के पास भेजा जाएगा। टैक्स रेवेन्यू में 1 फीसदी की कटौती से राज्यों को करीब 35,000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा। यह आंकड़ा इस साल के अनुमानित टैक्स कलेक्शन पर आधारित है। इस बारे में वित्त मंत्रालय और वित्त आयोग ने ईमेल का जवाब नहीं दिया। 
केंद्र का खर्च बढ़ा
सूत्रों ने कहा कि 1980 में केंद्रीय करों में राज्यों का हिस्सा 20 फीसदी था जो अब 41 फीसदी है। लेकिन आर्थिक सुस्ती के कारण केंद्र का खर्च बढ़ गया है। यही वजह है कि केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी कम करने की मांग की जा रही है। 2024-25 में केंद्र का राजकोषीय घाटा जीडीपी का 4.8 फीसदी रहने का अनुमान है जबकि राज्यों के मामले में यह 3.2 फीसदी है। 
इकॉनमी में सरकार के कुल खर्च में राज्यों का हिस्सा 60 फीसदी से अधिक है। वे हेल्थ और एजुकेशन जैसे सोशल इन्फ्रास्ट्रक्चर पर ज्यादा खर्च करते हैं। दूसरी तरफ सेंट्रल गवर्नमेंट का फोकस फिजिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर पर है। लेकिन जुलाई 2017 में जीएसटी के लागू होने के बाद से राज्यों के रेवेन्यू जुटाने की क्षमता सीमित हो गई है। केंद्र सरकार ने कोरोना महामारी के बाद से सेस और सरचार्ज में भी बढ़ोतरी की है। पहले यह ग्रॉस टैक्स रेवेन्यू का 9 से 12 परसेंट हुआ करता था जो अब 15 फीसदी से ऊपर हो गया है। इसे राज्यों का साथ साझा नहीं किया जाता है। 
चुनावी रेवड़ियों पर नकेल
सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार राज्यों को चुनावी रेवड़ियां बांटने से भी हतोत्साहित कर सकती है। उन्हें कैश, कर्ज माफी और दूसरी चुनावी रेवड़ियां बांटने से रोका जा सकता है। सूत्र ने कहा कि इसका एक तरीका यह हो सकता है कि राज्यों को स्टेट टैक्स रेवेन्यू में कमी की पूर्ति के लिए दिए जाने वाले सेंट्रल ग्रांट को कुछ शर्तों को पूरा करने से जोड़ दिया जाए। केवल उन शर्तों को पूरा करने के बाद ही राज्य ऐसे अनुदान के लिए पात्र होंगे। पिछले पांच साल में रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट में भारी गिरावट आई है। 2021-22 में यह 1.18 लाख करोड़ रुपये थी जिसके 2025-26 में 13,700 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। 
-Legend News

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