मथुरा। वृंदावन के डालमिया बाग से रातों-रात करीब 500 हरे वृक्षों को काटने के मामले में कमिश्नर आगरा मंडल ऋतु माहेश्‍वरी ने भी शासन के निर्देश पर एक कमेटी का गठन कर रिपोर्ट पेश करने को कहा है। 
गुरुकृपा तपोवन नामक एक रेजिडेंशियल रियल एस्टेट प्रोजेक्ट खड़ा करने के उद्देश्‍य से बिना अनुमति काटे गए इन सैकड़ों हरे वृक्षों का विवाद यूं तो NGT तक जा पहुंचा है और उसमें दो याचिकाएं भी दाखिल हो चुकी हैं। इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए NGT ने एक उच्‍च स्‍तरीय कमेटी का भी गठन किया है, किंतु अब मंडलायुक्त ऋतु माहेश्वरी ने इसमें मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण की भूमिका का पता लगाने के लिए 3 सदस्‍यीय समिति का गठन किया है।  
यह समिति मंडलायुक्त के समक्ष 15 दिन के अंदर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी, और फिर उसके आधार पर इसमें दोषी पाए गए मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण के अधिकारी एवं कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई होगी। हालांकि विकास प्राधिकरण ने इस सबसे बच निकलने के लिए ही एक FIR दर्ज कराई थी, लेकिन लगता है कि योगी सरकार ने भी मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण की इस पैंतरेबाजी को भली प्रकार भांप लिया है लिहाजा वह पूरी सच्चाई सामने लाकर ठोस कार्रवाई करना चाहती है। 
शासन से प्राप्‍त निर्देशों के अनुपालन में मंडलायुक्त द्वारा गठित की गई इस समिति के सदस्य होंगे अपर आयुक्त (न्यायिक) प्रथम आगरा डॉ. कंचन शरण, अपर आयुक्त प्रशासन आगरा राजेश कुमार तथा मुख्य विकास अधिकारी मथुरा मनीष मीणा। तीनों अधिकारियों की यह समिति जांच के उपरांत दोषी अधिकारी एवं कर्मचारियों के विरुद्ध संस्‍तुति सहित अपनी आख्‍या मंडलायुक्त को सौंपेगी, जिसे फिर शासन को भेजा जाएगा। 
उधर एनजीटी द्वारा गठित कमेटी में शामिल जिलाधिकारी मथुरा, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य, पर्यावरण और वन मंत्रालय के सदस्‍य, प्रिंसिपल चीफ कन्‍जर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट के सदस्य तथा निदेशक फॉरेस्‍ट सर्वे ऑफ इंडिया को दो महीने में अपनी जांच रिपोर्ट सौंपने के आदेश दिए गए हैं। 
मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण की भूमिका पहले दिन से संदिग्ध 
दरअसल, इस मामले में मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण की भूमिका पहले दिन से ही संदिग्ध रही है। कोई यह मानने के लिए तैयार ही नहीं है कि कॉलोनी के लिए डालमिया बाग के पेड़ मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण के संज्ञान में लाए बिना काटे गए। 
सब जानते हैं कि डालमिया बाग में गुरुकृपा तपोवन कॉलोनी बनाने के लिए विकास प्राधिकरण के पास एक नक्शा भी भेजा गया था। पेड़ काटने से उपजे विवाद के बाद पहले तो प्राधिकरण ने कोई नक्शा उसे मिलने की बात ही झुठला दी थी परंतु जब उसे मीडिया सामने ले आया तो प्राधिकरण ने यह कहकर लीपापोती करने का प्रयास किया कि नक्शे की स्‍क्रूटनी की जा रही है। 
दूसरी ओर वन विभाग, बिजली विभाग और मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण द्वारा दर्ज कराई गईं शिकायतों में गुरुकृपा तपोवन के मालिक तथा नामजद आरोपी शंकर सेठ ने यह कहकर पूरे प्रकरण से पल्ला झाड़ने की कोशिश की है कि उसका इस सबसे कोई वास्ता नहीं है। शंकर सेठ को कोर्ट से अंतरिम जमानत भी इसी आधार पर मिली थी, लेकिन आश्‍चर्यजनक रूप से विकास प्राधिकरण ने गुरुकृपा तपोवन के नाम से पेश नक्शे की स्थिति आज तक स्‍पष्‍ट  नहीं की। 
मसलन यदि शंकर सेठ का प्राधिकरण में पेश गुरुकृपा तपोवन प्रोजेक्ट के नक्शे से कोई वास्ता नहीं है तो उसका वास्ता किससे है? 
बहरहाल, शासन की मंशा तथा मंडलायुक्त की कार्यप्रणाली से निवेशकों में यह उम्मीद जरूर जागी है कि अब जल्द सच्‍चाई सामने आएगी और अब तक भ्रष्‍टाचार का पर्याय बने रहे मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण की असलियत भी पता लगेगी। 
सर्वविदित है कि मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण की भूमिका हर उस मामले में अब तक संदिग्ध ही रही है जिस मामले में उसके अप्रूवल की दरकार होती है। फिर चाहे वह रियल एस्‍टेट प्रोजेक्ट हो या होटल, नर्सिंग होम हो या मॉल, दुकान हो या मकान, या फिर कोई शोरूम ही क्यों न हो। 
अब देखना यह है कि हर वक्त आसान शिकार की तलाश में रहने वाले एमवीडीए के अधिकारी एवं कर्मचारी डालमिया बाग प्रकरण में फंसते हैं या नहीं, क्योंकि आज तक तो वह साफ बच निकलने में सफल रहे हैं। 
-Legend News 

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