रिपोर्ट : LegendNews
78 वें निरंकारी संत समागम से दिव्य शिक्षाएं एवं आनंद समेटे वापस लौटे ब्रज के निरंकारी श्रद्धालु
मथुरा। प्रेम, सेवा, समर्पण, सत्य ज्ञान से ओतप्रोत 78 वां निरंकारी संत समागम सफलतापूर्वक संपन्न हो गया, जिसमें चारों दिन लगातार समागम के मुख्य विषय ‘ आत्ममंथन ’ पर आधारित संदेश दिया गया। सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज एवं आदरणीय निरंकारी राजपिता रमित जी की पावन छत्रछाया में हरियाणा के समालखा स्थित संत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल में 650 एकड़ के विशाल मैदान पर 31 अक्तूबर से शुरू हुए संत समागम में पूरे भारतवर्ष एवं विदेशों के लाखों भक्तों सहित ब्रज क्षेत्र के हजारों श्रद्धालु मथुरा जोन के जोनल इंचार्ज एच के अरोड़ा के साथ सम्मिलित होकर आध्यात्मिकता के अनुठे आनंद से लाभान्वित हुए।
समालखा से लौटे मीडिया सहायक किशोर स्वर्ण ने बताया कि मथुरा के सेवादार भक्तों ने समागम में सेवादल रैली, निरंकारी प्रदर्शनी, रेलवे काउंटर, प्रेस एवं पब्लिसिटी, प्रचार विभाग, ज्ञान कक्ष आदि स्थानों पर अपनी सेवाएं दी, वहीं मथुरा के श्रीरामजी ब्रजवासी ग्रुप ने हरदेव वाणी के शब्द संख्या 72 वें पद का गायन कर ब्रज की उपस्थिति दर्ज कराई। मथुरा से गए निरंकारी भक्त, सत्गुरू के आशीर्वचनों के रूप में प्राप्त दिव्य शिक्षाएं एवं आनंद समेटे हुए मंगलवार को वापस लौट आए हैं, जबकि सेवादल का एक जत्था बुधवार सुबह वापस लौटेगा।
समागम में विश्वभर से पहुंचे विशाल मानव परिवार को सम्बोधित करते हुए सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने फरमाया कि आत्ममंथन केवल विचार करने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि अपने भीतर झांकने की साधना है जो परमात्मा के अहसास से सरल हो सकती है। आत्ममंथन वास्तव में स्वयं के सुधार का मार्ग है। जब मन निरंकार परमात्मा से जुड़ता है, तो भीतर की शांति और बाहर का व्यवहार दोनों दिव्यता से भर जाते हैं। उन्होंने कहा कि केवल भौतिकता में आसक्त रहना अथवा आध्यात्मिक उन्नति के लिए घर परिवार की जिम्मेदारियों से किनारा कर लेना ये दोनों ही जीवन के चरम छोर हैं। संतों ने हमेशा अलिप्त भाव से संसार में रहकर परमार्थ के मार्ग को अपनाते हुए संतुलित जीवन जीने की बात कही है। जीवन में यदि हम निराकार परमात्मा की उपस्थिति का अहसास करते हुए हर कार्य करते हैं तो वह कार्य निर्लेप भाव से युक्त सेवा ही बन जाता है जिससे जीवन के दोनों पहलुओं की पुर्ति हो जाती है।
माता सुदीक्षा जी महाराज ने कहा कि एक निराकार परमात्मा ही है जो सदैव काल सत्य रहने वाला है। यही सबका मूल स्रोत है। जब इस स्रोत के साथ जुड़कर एकत्व के भाव में समाहित हो जाते हैं तो फिर कोई विपरीत भाव मन में उत्पन्न नहीं होता। समागम का मुख्य विषय ‘आत्ममंथन’ भी इसी ओर अग्रसर करता है। समागम के चार दिनों में जो आत्ममंथन हो गया है और जो दिव्य सिखलाई प्राप्त हुई है उसे दिनरात, जीवनपर्यन्त अपने जीवन में अपनाते हुए स्वयं का भी कल्याण करे और दूसरों का भी कल्याण करते चले जायें।
आदरणीय निरंकारी राजपिता रमित जी ने अपने पावन विचार प्रकट करते हुए कहा कि परमात्मा एक सार्वभौमिक सत्य है जो पहले भी सत्य था, आज भी सत्य है और आगे भी सत्य ही रहेगा। परमात्मा की पहचान करके ही सार्वभौमिक सत्य को जाना जा सकता है और जानने के उपरान्त समझ में आता है कि यह परम सत्य प्रत्येक जीव के लिए एक ही है। इस सत्य को जानने का अधिकार हर मानव को है, इस परम सत्य का बोध कराने के लिए ही सत्गुरु धरा पर आते हैं।
दूसरे दिन हरियाणा के माननीय राज्यपाल प्रोफेसर असीम कुमार घोष ने अपनी अर्धांगिनी के साथ समागम में पधारकर सतगुरु माता जी एवं निरंकारी राजपिता जी के आशीर्वाद प्राप्त किए और उनके प्रति अपना आदर-सम्मान प्रकट करते हुए जहां संत निरंकारी मिशन की दिव्य विचारधारा एवं मानवता के प्रति निष्काम सेवाओं की प्रशंसा की, वहीं निरंकारी सेवादल के स्वयंसेवकों के मर्यादा एवं अनुशासन की भी सराहना की।
समागम के तीसरे दिन हरियाणा के माननीय मुख्यमत्री श्री नायब सिंह सैनी ने समागम में पधारकर सत्गुरु के आशिष प्राप्त किए। अपने सम्बोधन में उन्होंने कहा कि निरंकारी मिशन आत्ममंथन, आत्मसुधार एवं समाज निर्माण का प्रेरणा स्रोत है। यहां सारे भेदभावों से उपर उठकर मानव को मानव बनने की शिक्षा दी जाती है। आध्यात्मिक जागरूकता के साथ साथ मिशन समाज कल्याण के कार्यों में भी अनुकरणीय योगदान दे रहा है जो अत्यंत सराहनीय है।
- Legend News

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