"आम" से "खास आदमी" बने AAP के दिल्ली वाले घुंघुरू सेठ तो बड़े "खदूस" निकले। सेठ जी जेल प्रवास के दौरान भी न केवल "सेठानी" के हाथ से बने पकवानों का मजा लूट रहे हैं बल्‍कि मधुमेह जैसी बीमारी को भी ठीक उसी अंदाज में चुनौती दे रहे हैं जैसे तिहाड़ जाने से पहले ED और CBI को दिया करते थे। कहते थे कि हिम्मत है तो हाथ डाल कर दिखाएं, लाखों घुंघुरू सेठ दिल्ली की सड़कों पर दिखाई देंगे। ये बात अलग है कि घुंघुरू सेठ की चुनौती को स्‍वीकार करते हुए जब ED ने उनके गले पर हाथ डालकर हवालात में ला ठूंसा, तो दिल्ली के किसी कोने से 'चूं' की आवाज भी सुनाई नहीं दी। 
जो आवाजें सुनाई दे भी रही हैं, वो AAP के उन्‍हीं खास आदमियों की हैं जिन्‍होंने AAP के साथ ही आम आदमी की आत्मा का पिंडदान कर दिया था। वो अब खास से खासमखास बनने की जुगाड़ में हैं और इसलिए उसी तरह की हरकतें कर रहे हैं जिस तरह की हरकतें आप तिहाड़ में कर रहे हैं। 
फर्क सिर्फ इतना है कि आप बाहर निकलने की जुगत में हैं और वो आपको लंबे समय तक अंदर रखने का बंदोबस्त करने में लगे हैं। आप अपनी शुगर बढ़ा रहे हैं जिससे मेडिकल ग्राउंड पर बेल मिल जाए और वो उसे कम कराने के लिए "इंसुलिन" मांग रहे हैं ताकि सब-कुछ ठीक हो जाए और मेडिकली फिट-फाट होकर आप 'तिहाड़ी लुत्फ़' उठाते रहें। 
घुंघुरू सेठ, आपको याद होगा कि आपने अपनी जेल यात्रा से पहले और अपने साथियों के जेल प्रवास पर बहुत कुछ ऐसा कहा था जिसका बड़ा गूढ़ अर्थ था। जैसे वो तो 'सेनानी' हैं। साल-दो साल भी रहना पड़ा तो हंस-हंस के काट लेंगे, लेकिन जब आपकी बारी आई है तो आपका रो-रोकर बुरा हाल है। 
वैसे घुंघुरू सेठ एक बात तो तय है कि आपकी जिह्वा पर देवी सरस्‍वती विराजती हैं। आपके पुराने वीडियो देखे। उन्‍हें देखने के बाद इस बात का इल्म हुआ, अन्यथा आपकी 'सरकार' बन जाने के बाद भी हम तो आपको वही फटोली टाइप का चप्‍पल चटकाता हुआ आम आदमी समझते रहे। हमें पता ही नहीं था कि कभी ठेल-ढकेलों पर गोलगप्पे खाने वाला झोलाछाप शर्ट में लिपटा हुआ यह आदमी इतना शातिर निकलेगा कि ED और CBI को भी 'मीठी गोली' दे देगा। 
नतीजा जो भी हो, फिलहाल चुनावों के बीच घुंघुरू सेठ चर्चा में हैं और उनका शुगर लेवल राष्‍ट्रीय स्‍तर की बहस का मुद्दा बना हुआ है। हालांकि आश्चर्य इस बात पर जरूर हो रहा है कि घुंघुरू सेठ को घर से आम, मिठाई तथा पूरी जैसे पकवान भेजने वाली सेठानी ने अचानक चुप्पी साध ली है। डाइट चार्ट को ताक पर रखकर 'तर माल' भेजने वाली सेठानी की चुप्पी आने वाले तूफान का संकेत दे रही है क्योंकि कहते हैं "राजनीति" में कोई किसी का स्‍थायी दोस्‍त या दुश्मन नहीं होता। कुल मिलाकर मामला कुर्सी का है और कुर्सी जो न करवा दे, वो थोड़ा है। 
कुर्सी यदि बच्‍चों के सिर की कसम तुड़वा सकती है। 'अनीति' से 'शराब नीति' बनवा सकती है। 'विश्वास' के साथ धोखा कर सकती है और सत्य के प्रतीक 'सत्येन्‍द्र' को झूठ के पुलिंदे में तब्दील करा सकती है, तो सेठानी से भी सब-कुछ करा सकती है। कुर्सी पर बैठने की रिहर्सल तो सेठानी कर ही चुकी हैं। बस उसे अमलीजामा पहनाना बाकी है। 
दरअसल, सेठानी भी जानती हैं कि घुंघुरू सेठ चाहे जितने पैर पीट लें... वो लंबे नप चुके हैं। उनका शुगर लेवल हाई रहे या लो, लेकिन उनका अपना लेवल अब शायद ही उठ सके। 
भरोसा न हो इस बात पर तो एक नजर यूपी के उन मियां साहब की हालत पर डाल लें जिनके नाम का अर्थ ही उर्दू में "महान और पराक्रमी" होता है और कभी सत्ता के गलियारों में उनकी एक आवाज से बड़े-बड़े शूरमाओं का पायजामा ढीला हो जाया करता था लेकिल आज बेचारे वैसे ही सींखचों के पीछे पाए जाते हैं जैसे कि घुंघुरू सेठ बैरक नंबर दो में पाए जाते हैं।  
वैसे घुंघुरू सेठ के नाम का अर्थ ही "कमल" होता है। इस नजरिये ये देखें तो घुंघुरू सेठ खुद से लड़ रहे हैं। और खुद से लड़कर कोई जीता है क्या आज तक। बेहतर होगा कि वह अपने अब तक किए पापों का प्रायश्चित पूरी ईमानदारी से कर लें और सेठानी को चुपचाप कुर्सी सौंपकर तिहाड़ में उनके भी आने का मार्ग प्रशस्‍त करें। ईश्वर उनकी मदद जरूर करेंगे क्योंकि संभवत: ईश्वर के पास भी उनके इलाज का मात्र यही एक उपाय शेष है। आखिर अर्धांगिनी जो हैं। पाप-पुण्य में बराबर की भागीदार तो होंगी ही।  
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

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