भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने मंगलवार को कहा कि संसद द्वारा पारित कानून संवैधानिक माने जाते हैं और जब तक कोई स्पष्ट और गंभीर समस्या न हो, अदालतें हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं। उन्होंने यह टिप्पणी वक्फ संशोधन अधिनियम के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहीं। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ वक्फ संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मंगलवार, 20 मई को सुनवाई कर रही थी, जिसे पिछले महीने कानून बना दिया गया था। 
10 प्वाइंट्स में जानें कोर्ट ने क्या क्या कहा? 
केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से आग्रह किया कि वह अंतरिम आदेश पारित करने के लिए वक्फ (संशोधन) अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई को तीन मुद्दों तक सीमित रखे, जिनमें 'कोर्ट, यूजर और डीड' द्वारा घोषित वक्फ संपत्तियों को डि-नोटिफाई करने का बोर्डों का अधिकार भी शामिल है। वक्फ (संशोधन) अधिनियम की संवैधानिकता को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक सिंघवी ने केंद्र की दलील का विरोध करते हुए कहा कि महत्वपूर्ण कानून पर टुकड़ों में सुनवाई नहीं हो सकती।
कोर्ट में कपिल सिब्बल ने दोहराया कि कानून का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों को जब्त करना है, मुख्य न्यायाधीश गवई ने जवाब दिया, "संसद द्वारा पारित कानून में संवैधानिकता की धारणा है। जब तक कोई स्पष्ट मामला नहीं बनता, तब तक अदालतें हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं, खासकर वर्तमान परिदृश्य में, हमें इससे अधिक कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है।"
सीजेआई बीआर गवई ने कपिल सिब्बल की दलील पर कहा- मैं दरगाह भी गया, चर्च भी गया... हर किसी के पास यह (चढ़ावे का पैसा) है। इसपर सिब्बल ने कहा- दरगाह दूसरी बात है, मैं मस्जिदों की बात कर रहा, 2025 का कानून पुराने कानून से बिल्कुल अलग है। मंदिरों में चढ़ावा आता है लेकिन मस्जिदों में नहीं। यही वक्फ बाय यूजर है,बाबरी मस्जिद भी ऐसी ही थी।
सीजेआई ने पूछा- क्या पहले के कानून में पंजीकरण की आवश्यकता थी? सिब्बल ने कहा- हां.. इसमें कहा गया था कि इसे पंजीकृत किया जाएगा। सीजेआई ने पूछा- सूचना के तौर पर हम पूछ रहे हैं कि क्या पुराने कानून के तहत वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण का प्रावधान अनिवार्य था या सिर्फ ऐसा करने का निर्देश था? कपिल सिब्बल ने कहा- पुराने अधिनियमों में 'Shall' शब्द का इस्तेमाल किया गया था। CJI ने कहा, केवल 'Shall' शब्द के प्रयोग से पंजीकरण कराना अनिवार्य नहीं हो सकता।
सीजेआई ने कहा कि हम यह पूछ रहे हैं कि क्या प्रासंगिक समय के अधिनियमों के तहत वक्फ घोषित की गई संपत्ति का पंजीकृत होना अनिवार्य या आवश्यक था? कपिल सिब्बल ने कहा कि 1954 के बाद वक्फ कानून में जितने भी संशोधन हुए, उनमें वक्फ प्रॉपर्टी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य था।
अदालत ने पूछा,  क्या वक्फ बाय यूजर में भी पंजीकरण अनिवार्य था। इसपर कपिल सिब्बल ने कहा-हां। फिर अदालत ने कहा- तो आप कह रहे 1954 से पहले उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ का पंजीकरण आवश्यक नहीं था और 1954 के बाद यह आवश्यक हो गया। इसपर सिब्बल ने कहा- इस बारे में कुछ भ्रम है, यह 1923 हो सकता है।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा- बहुत दबाव है, सिर्फ हम पर ही नहीं बल्कि आप पर भी काफी दबाव है। सुप्रीम कोर्ट ने सिब्बल से कहा कि हम आपकी इस दलील को दर्ज करेंगे कि पुराने अधिनियम के तहत पंजीकरण की आवश्यकता थी, लेकिन ऐसा नहीं करने पर क्या होगा इसका कोई प्रावधान नहीं था, इसलिए पंजीकरण न कराने पर कुछ नहीं होने वाला था।
कपिल सिब्बल की दलीलें सुनने के बाद सीजेआई बीआर गवई ने कहा- खजुराहो में एक मंदिर पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है, फिर भी लोग वहां जाकर पूजा-प्रार्थना कर सकते हैं। इसपर सिब्बल ने कहा- नया कानून कहता है कि अगर कोई संपत्ति एएसआई संरक्षित है तो यह वक्फ नहीं हो सकती।
सीजेआई ने पूछा- क्या इससे आपका अपने धर्म का पालन करने का अधिकार छिन जाता है? क्या आप वहां जाकर प्रार्थना नहीं कर सकते? सिब्बल ने कहा- हां, इस कानून में कहा गया है कि वक्फ संपत्ति को रद्द माना जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने उनसे फिर पूछा- क्या इससे आपका धर्म पालन का अधिकार भी छिन जाता है? 
सीजेआई ने कहा, मैंने एक एएसआई संरक्षित मंदिर का दौरा किया; मैंने देखा कि भक्त वहां जाकर प्रार्थना कर सकते हैं, तो क्या इस तरह की घोषणा से आपका प्रार्थना करने का अधिकार छिन जाता है? सिब्बल- अगर आप कहते हैं कि वक्फ मान्यता रद्द की जाती है तो इसका मतलब अब वह प्रॉपर्टी वक्फ नहीं है। मेरा कहना है कि यह प्रावधान अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है। न्यायालय के रिकॉर्ड पर लिया गया है कि याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन करता है और नागरिकों से उनकी धार्मिक प्रथाओं को जारी रखने का अधिकार छीन लिया जाएगा।
-Legend News

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