रिपोर्ट : LegendNews
डालमिया बाग का एंग्रीमेंट कैंसिल करने की खबर से परेशान माफिया अब मीडिया को मैनेज करने में जुटा
मथुरा। वृंदावन के डालमिया बाग का एग्रीमेंट कैंसिल करने की खबर से परेशान माफिया अब मीडिया को मैनेज करने में जुट गया है, क्योंकि एग्रीमेंट कैंसिल होने की खबर के बाद निवेशकों ने उस पर पैसा लौटाने के लिए अच्छा-खासा दबाव बनाना शुरू कर दिया है।
सैकड़ों हरे पेड़ों को काटने की जिम्मेदारी लेने से भी भाग रहे माफिया ने आज तक न तो अपने ''कथित नंबर एक'' में हुए सौदे की सच्चाई सामने रखी है और न ये बताया है कि आखिर डालमिया परिवार से उसके बगीचे का एग्रीमेंट किस-किसने किया तथा किन शर्तों पर किया।
ऐसे में अब इस पूरे सौदे पर उठ रहे कुछ ऐसे सवाल ''माफिया'' से लेकर ''मीडिया'' तक को सवालों के घेरे में ले रहे हैं जिनका जवाब देना उनके लिए जरूरी हो जाता है, और यदि वो उसके जवाब नहीं देते तो उनकी नीयत स्वत: संदिग्ध साबित हो जाती है।
कहा जा रहा है कि डालमिया परिवार ने अपने बाग का सौदा आठ समझौता पत्रों (एग्रीमेंट) के जरिए किया तथा हर एग्रीमेंट के साथ एक निर्धारित रकम ली गई और डालिमया परिवार ने एग्रीमेंट में मिली इस रकम का आयकर तक जमा कर दिया। एग्रीमेंट करने वालों ने शंकर सेठ से सौदा बाद में किया।
बस यहीं से माफिया के साथ-साथ मीडिया की भी नीयत में खोट नजर आने लगता है और ये खोट बहुत महत्वपूर्ण सवाल खड़े करता है।
सवाल नंबर एक: यदि डालमिया परिवार से आठ समझौता पत्रों के जरिए पूरी नेक नीयत से सौदा किया गया है तो दोनों ही पक्षों को यानी विक्रेता और क्रेता को उसे सार्वजनिक करने में हर्ज क्या है?
सवाल नंबर दो: किसी भी सौदे का एग्रीमेंट कर लेने भर से वह इनकम टैक्स तो क्या किसी भी टैक्स के दायरे में नहीं आ जाता, यह बात छोटे से छोटा व्यापारी भी जानता है। तो फिर डालमिया परिवार ने डील फाइनल हुए बिना मात्र एडवांस पर इनकम टैक्स कैसे जमा कर दिया जबकि यह तो ''जीएसटी तथा कैपिटल गेन'' का भी मामला नहीं बनता। इस बात की पुष्टि किसी भी चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) से की जा सकती है।
सवाल नंबर तीन: कहीं ऐसा तो नहीं कि यह सारा खेल मीडिया को मैनेज करके निवेशकों को गुमराह करने के लिए खेला जा रहा हो जिससे किसी भी तरह अपने ऊपर पड़ रहे दबाव को कम किया जा सके।
सवाल नंबर चार: जब डालमिया परिवार से सौदा बाकायदा एग्रीमेंट करके किया गया है और हर एग्रीमेंट के साथ एक निर्धारित रकम उसे दी गई है तो शंकर सेठ ने भी अपना सौदा स्थानीय खरीदारों से किसी न किसी एग्रीमेंट के साथ किया होगा। शंकर सेठ ने भी अपनी रकम सुरक्षित करने के लिए कोई न कोई लिखा-पढ़ी कराई होगी। तो फिर पेड़ कटने के बाद से लेकर अब तक शंकर सेठ क्यों कह रहा है कि उसका इस सौदे से कोई वास्ता नहीं है और पेड़ों को काटने में उसकी किसी भूमिका का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। जमानत के लिए कोर्ट में भी उसके वकीलों द्वारा यही दलील क्यों दी गई।
सवाल नंबर पांच: यदि डालमिया परिवार से लेकर एग्रीमेंट कराने वालों तक और उनसे लेकर शंकर सेठ तक सब के सब पाक साफ हैं, सौदा भी पूरी ईमानदारी से नंबर एक में हुआ है तो सब मिलकर क्यों एक प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं कर देते। क्यों नहीं बता देते कि एक रियल एस्टेट प्रोजेक्ट खड़ा करने के लिए यह सौदा किया गया है और सौदे में कोई बदनीयत नहीं है।
इस प्रेस कॉन्फ्रेस में सब अपनी-अपनी भूमिका भी साफ कर सकते हैं। उसके बाद मुद्दा रह जाएगा केवल सैकड़ों हरे वृक्षों को रातों-रात काट डालने का, तो उसकी जांच चलती रहेगी। एनजीटी में दायर याचिकाओं का भी समय पर निपटारा हो ही जाएगा।
और आखिरी सवाल यह कि शंकर सेठ की रियल एस्टेट फर्म गुरूकृपा तपोवन के नाम से जो नक्शा मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण के पास भेजा गया है, वो किसने और किस अधिकार से दाखिल किया है?
सच तो यह है कि इनमें से किसी भी सवाल का जवाब देना आसान नहीं है इसलिए सारे सफेदपोश अपना मुंह छिपाए घूम रहे हैं और अब तक किसी ने सीना ठोक कर नहीं कहा कि सौदा उसने किया है।
बेशक जमीन का सौदा करना गुनाह नहीं, लेकिन वह तब गुनाह बन जाता है जब उसके लिए कानून को ताक पर रखकर नियम विरुद्ध ऐसे-ऐसे काम किए जाएं जो एक ओर अपराध की परिधि में आते हों तथा दूसरी ओर उनसे एक बड़े वर्ग की भावनाएं भी आहत होती हों।
मीडिया को भी अब एक बात और साफ कर देनी चाहिए कि कब तक वह अतार्किक बातें छापता रहेगा और कब तक सफेदपोशों को बचाने के लिए अपने जमीर का सौदा करता रहेगा।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
Recent Comments