रिपोर्ट : LegendNews
लोकसभा चुनाव से उठा सुलगता सवाल: क्या मथुरा में कांग्रेसी कल्चर की शिकार हो चुकी है भाजपा?
कोई माने या न माने लेकिन ये सच है कि हेमा मालिनी तीसरी बार मथुरा से लोकसभा चुनाव जीतने जा रही हैं, परन्तु एक सच ये भी है इस चुनाव में भाजपा का स्थानीय कार्यकर्ता अपने मन से हार चुका है। वह दुखी भी है, और निराश भी। उसकी मन:स्थिति ऐसी है कि उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा, करे तो करे क्या।
पार्टी को अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने वाले कार्यकर्ता के दुख की बड़ी वजह है भाजपा में उस कांग्रेसी कल्चर का 'घर' कर जाना, जिसके खिलाफ वह अब तक अपनी आवाज बुलंद करता रहा है।
पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने हेमा मालिनी को एक बार फिर मथुरा पर थोप तो दिया, लेकिन यह जानने की कोशिश नहीं की कि इसका 'आफ्टर इफेक्ट' क्या होगा। नतीजा सामने है।
पहले बात मतदान के पूअर प्रतिशत की
चुनाव आयोग के आंकड़े कहते हैं कि मथुरा में मतदान का प्रतिशत आधे से भी कम रहा है। हालांकि दूसरे चरण में जहां-जहां मतदान हुआ, वहां भी मतदान का प्रतिशत कोई बहुत अच्छा नहीं था किंतु मथुरा का मामला थोड़ा अलग है।
अलग इसलिए कि मथुरा को भाजपा का गढ़ माना जाता है। यहां की सभी पांचों विधानसभा सीटों पर भाजपा काबिज है। नगर निगम से लेकर जिला पंचायत तक भाजपा के पास है। हेमा मालिनी ने पिछले दोनों लोकसभा चुनाव यहां लाखों के अंतर से जीते हैं। फिर इस बार तो उनके सामने विपक्षी पार्टी को कोई ऐसा प्रत्याशी ही नहीं मिला जो उन्हें कड़ी टक्कर दे पाता। आरएलडी की चुनौती खत्म हो जाने के बाद हेमा मालिनी को तो जीत जैसे प्लेट में सजाकर दे दी गई।
ऐसे में उम्मीद यह की जा रही थी कि भाजपा की मथुरा इकाई अधिक से अधिक मतदान कराकर प्रदेश व केंद्र को कोई बड़ा संदेश देगी, जिसका असर चुनावों के अन्य चरणों पर दिखाई दे सकता था लेकिन हुआ इसका उल्टा।
मथुरा में मतदान संपन्न होते ही आरोप-प्रत्यारोप का ऐसा दौर शुरू हुआ जो एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी थमने का नाम नहीं ले रहा।
भ्रष्टाचार बन रहा अखबारों की सुर्खियां
पार्टी विद डिफरेंस के तमगे वाली भाजपा का मथुरा में आज हाल यह है कि सांगठनिक स्तर पर वह दोफाड़ हो चुकी है और पदाधिकारी ही एक-दूसरे पर भ्रष्टाचार के खुले आरोप लगा रहे हैं। इन आरोपों के समाचार अखबारों की सुर्खियां बन रहे हैं।
इन पदाधिकारियों की मानें तो हेमा मालिनी के चुनाव खर्च को आए पैसे से लेकर व्यापारी एवं उद्योगपतियों से मिले चंदे तक में खेल किया गया है। बड़े नेताओं में से सिर्फ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ही यहां चुनावी सभा करने आए थे, लेकिन उसके लिए भी अपेक्षा अनुरूप भीड़ न जुट पाने का कारण पैसे का बंटरबांट बताया जा रहा है।
यह पहली बार है कि भाजपा के लिए समर्पित 'संघ' के कार्यकर्ता भी इन आरोप-प्रत्यारोपों से अछूते नहीं रहे और उनके ऊपर उदासीनता का आरोप चस्पा किया जा रहा है। बताया जाता है संघ के सक्रिय कार्यकर्ताओं की निष्क्रियता का कारण भी भाजपा मथुरा की कार्यशैली रही।
जिला और महानगर अध्यक्ष के बीच तालमेल का भारी अभाव बताया जाता है, और इसीलिए कोई काम सुचारू रूप से नहीं हो पाता। मतदान के दिन जिले भर के बूथ इस बात के गवाह बने। दूसरे दलों की बात छोड़ भी दें तो भाजपा के कार्यकर्ता साफ कह रहे थे कि यदि हेमा के सामने किसी पार्टी ने कोई कद्दावर प्रत्याशी खड़ा कर दिया होता तो जीत के लिए नाकों चने चबाने पड़ जाते।
एक कॉकस रहा चर्चा का विषय
पार्टी के सूत्र बताते हैं कि मथुरा में पूरा चुनाव उन चंद लोगों ने हाईजैक कर लिया था जो एक कॉकस का हिस्सा हैं। ये वही कॉकस है जिसने इस धार्मिक जनपद में पार्टी को इस स्थिति में ला खड़ा किया है। ये कॉकस पहले से जानता था कि हेमा मालिनी के चुनाव जीतने में शक की कोई गुंजाइश नहीं है इसलिए उसका सारा फोकस निजी स्वार्थों की पूर्ति पर रहा और वह उसमें सफल भी हुआ।
यही कारण है कि 26 अप्रैल को मतदान संपन्न होने के साथ ही उन्हें लेकर दबा हुआ आक्रोश सामने आने लगा और पार्टी का एक बड़ा वर्ग यह कहने लगा कि हेमा भले ही चुनाव जीत रही हैं किंतु कार्यकर्ता हार गया है।
सब जानते हैं हेमा मालिनी ने अपने दूसरे चुनाव के वक्त तीसरे चुनाव में मथुरा के किसी व्यक्ति को मौका देने की बात कही थी, किंतु स्थानीय संगठन की अंदरूनी कलह ने किसी का नाम तक ऊपर नहीं आने दिया।
विधानसभा चुनाव 2027 में दिखाई दे सकता है इसका असर
पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं का साफ कहना है कि यदि मथुरा में उत्पन्न इस स्थिति को समय रहते नहीं संभाला गया तो इसके दुष्परिणाम 2027 के विधानसभा चुनाव में भुगतने पड़ सकते हैं।
और अगर लोकसभा की तरह यूपी के विधानसभा चुनावों में भी आरएलडी साथ रहा तो परिस्थितियां काफी जटिल हो सकती हैं।
इसे यूं भी समझ सकते हैं कि हर बार न तो मथुरा का कार्यकर्ता थोपे हुए उम्मीदवारों को सहन करेगा और न अपने भविष्य से खिलवाड़ करने वाले फैसलों को स्वीकार करता रहेगा।अब देखना यह होगा कि इस स्थिति को पार्टी का प्रदेश और केंद्र का शीर्ष नेतृत्व किस रूप में लेता है क्योंकि अंतिम निर्णय तो उसी को करना है। यही निर्णय अंतत: कृष्ण की जन्मभूमि में भाजपा के भविष्य को रेखांकित करेगा।
रहा सवाल आज का, तो आज की परिस्थितियां विस्फोटक न सही लेकिन किसी विस्फोट का कारण जरूर बन सकती हैं।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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