क्‍या आप भी ऐसे अधिकांश लोगों में शामिल हैं जो हर समय या तो आत्‍महत्‍या करने पर आमादा रहते हैं या फिर जाने-अनजाने दूसरों की जिंदगी छीन लेने की कोशिश करते हैं।

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि प्रति वर्ष देशभर में जितनी मौतें दूसरे सभी कारणों को मिलाकर नहीं होतीं, उससे कहीं अधिक मौतें सिर्फ सड़क दुघर्टनाओं के कारण हो जाती हैं।

सड़क दुर्घटना में मारे जाने वाले इन भयावह आंकड़ों से हर खास और आम आदमी भली-भांति परिचित है लेकिन सच्‍चाई को देखते हुए उसे स्‍वीकार करना नहीं चाहता।

सच तो यह है कि सड़क पर वाहन लेकर निकलने वाला हर तीसरा आदमी आज जान देने या जान लेने की कोशिश में लगा है लिहाजा वह आईपीसी की धारा 309 अथवा 304 A का आरोपी है और उसके खिलाफ मोटर व्‍हीकल एक्ट की जगह आत्‍महत्‍या करने की कोशिश अथवा लापरवाही पूर्वक किसी की जान लेने पर आमादा होने के अपराध (दोनों में से जो भी बनता हो) में कार्यवाही की जानी चाहिए। 

किसी भी सड़क पर निकल जाइए, हर जगह दुपहिया वाहन पर चार पहिया वाहनों की क्षमता लायक सवारी बैठाकर फर्राटा भरते लोग देखे जा सकते हैं। बच्‍चों और औरतों सहित चार-चार और यहां तक कि पांच लोगों के अलावा बैग टांगकर चलते दुपहिया वाहन चालक किसी की चिंता नहीं करते। कई बार तो हैंडल के बीच में भी कोई सामान इस कदर फंसा लेते हैं कि उसके मूवमेंट तक की गुंजाइश नहीं रहती। ऊपर से चालक का हेलमेट भी पीछे बैठी किसी सवारी के हाथ में अथवा हेंडल पर टंगा होता है। कुछ लोगों की हरकत तो ये बताती है कि वह मौत के इस खेल द्वारा सरकारी मुआवजा पाने के लिए ही घर से निकलते हैं।  

सड़क पर ऐसे लोग भी बहुत से नजर आ जाएंगे जिन्‍होंने अपने दुपहिया वाहन को सामान ढोने वाले छोटे वाहन में तब्‍दील कर रखा है। वह उस पर दोनों ओर तमाम सामग्री से लदे थैले, प्‍लास्‍टिक कंटेनर और यहां तक कि गैस सिलेंडर भी लादकर चलते हैं।

किसी के मकान में यदि कंस्ट्रक्शन वर्क चल रहा है तो वह छोटे-मोटे लोहे के गेट, सरिया, रॉड, एंगल भी अपने दुपहिया वाहन पर लादकर ले जाना उचित समझता है ताकि उस पर खर्च होने वाली मजदूरी बचाई जा सके।

ऐसा करने वाले अपने बचाव में अधिकांशत: किसी मजबूरी का हवाला देते हैं लेकिन कोई भी मजबूरी किसी की या अपनी भी जिंदगी से खेलने की इजाजत नहीं देती इसलिए वह किसी रियायत के हकदार नहीं हो सकते।

नाबालिग बच्‍चों के हाथ में दोपहिया और चार पहिया वाहन थमा देने वाले पेरेंट्स तो कतई रहम के अधिकारी नहीं हैं क्‍योंकि वह सबकुछ जानते व समझते हुए एक गंभीर अपराध को अंजाम देने की इजाजत देते हैं।

इसी प्रकार चार पहिया वाहन चालक भी ड्राइवर सहित पांच सवारियों वाले वाहन में आठ-आठ लोगों को बैठाकर चलने से परहेज नहीं करते, सीट बेल्‍ट बांधना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं और सड़क सुरक्षा के अन्‍य नियमों को मानने में तौहीन महसूस करते हैं। पीछे के हिस्‍से में ऊपर तक लगेज भर लेना और पीछे के शीशे को पूरी तरह ढक देना साधारण बात हो गई है।

हर नियम-कानून की सरेआम धज्‍जियां उड़ते देखनी हैं तो स्‍कूल वाहन इसका सबसे अच्‍छा उदाहरण हैं। अनगिनत बच्‍चों की जिंदगी जर्जर व ओवरलोड स्‍कूली वाहन की भेंट चढ़ चुकी है, बावजूद इसके न तो स्‍कूल संचालक सबक सीखने को तैयार हैं और न बच्‍चों के अभिभावक। पेरेंट्स खुद अपने बच्‍चों को ऐसे स्‍कूल वाहन में भेजने से परहेज नहीं करते जो किसी भी वक्‍त दुर्घटनग्रस्‍त हो सकता है और बच्‍चों की जिंदगी को दांव पर लगा रहा है।

सड़क पर मौत को चुनौती देने वालों में निजी वाहन चालकों से कहीं ऊपर हैं सरकारी वाहन चालक। किसी भी राज्‍य की परिवहन व्‍यवस्‍था इसकी गवाह है। क्षमता से कई गुना अधिक सवारियां भरकर चलना और ओवर स्‍पीड में चलना, सरकारी बस चालक अपना अधिकार मानते हैं। साथ ही बीच सड़क पर बस रोककर सवारियों को बैठाना और उतारना सरकारी बस चालकों का प्रिय शगल है।

डग्‍गेमार वाहन चालक चूंकि पुलिस व परिवहन विभाग की अतिरिक्‍त आमदनी का बड़ा जरिया होते हैं और उनके लिए दुधारू गाय बने हुए हैं इसलिए उनकी मनमर्जी पर लगाम लगाना किसी के बस की बात नहीं। डग्‍गेमार वाहनों की छत तक लदी सवारियों को देखकर अंदाज लगाया जा सकता है कि सड़कों पर मौत को किस तरह चुनौती दी जाती है।

रही बात माल ढोने वाले भारी चार पहिया वाहनों की तो शायद ही कोई ऐसा वाहन हो जो नियमानुसार सड़क पर चलता मिले। वाहन की कुल लंबाई-चौड़ाई, ऊंचाई व गहराई से अधिक हिस्‍से का इस्‍तेमाल करना और दुर्घटना को खुला निमंत्रण देना इनकी कार्यशैली बना हुआ है। किसी वाहन से लोहे की सरिया और गार्डर बाहर निकले मिलेंगे तो किसी में पशुओं के मुंह निकले होंगे। इन बाहर निकली हुई सरिया और गॉर्डर ने कितने लोगों को अकालमौत के मुंह में धकेला है, इसकी गिनती करने बैठेंगे तो कैलकुलेटर भी साथ नहीं देगा परंतु न कोई रोकने वाला है और न टोकने वाला क्‍योंकि जिनके ऊपर जिम्‍मेदारी है वही बिकाऊ हैं। लाशों का सौदा करना अब किसी के लिए शर्म की बात नहीं रह गई।   

कृषि कार्य के लिए अधिकृत ट्रैक्‍टर-ट्रालियां तो जैसे किसी नियम-कानून की मोहताज ही नहीं हैं। वो कृषि कार्य के अलावा सबकुछ करती हैं। जैसे बिल्डिंग मटेरियल ढोना, पशुओं को लादकर चलना, भूसे की सप्‍लाई करना और प्‍लास्‍टिक व पॉलीथिन का कचरा इधर से उधर ले जाना आदि। इस दौरान सड़क पर वह आंख, कान पूरी तरह बंद करके चलते हैं जिससे दूसरे वाहन चालकों की शिकायत को बेफिक्र होकर नजरअंदाज किया जा सके।

रही सही कसर कान में ईयरफोन ठूंसकर चलने वालों ने पूरी कर दी है। स्‍कूटी पर जाती हुई कोई लड़की हो या मोटरसाइकिल पर फर्राटा भरता कोई युवक, साइकिल पर चलने वाला घरेलू नौकर हो अथवा कोई थ्रीव्‍हीलर चालक ही क्‍यों न हो। जिसे देखो, उसके कानों में ईयरफोन लगे मिल जाएंगे। सड़क उसके लिए घर का वो आंगन है जहां वह गाने सुनने का लुत्‍फ उठाने को स्‍वतंत्र है। किसी भारी वाहन के नीचे आ गए तो मुआवजा है न। राजी-राजी नहीं तो गैर राजी सही। सड़क अवरुद्ध कर देंगे, जिंदाबाद-मुर्दाबाद के नारे लगाएंगे। कुछ न कुछ तो मिलेगा ही।

कहने को सड़कों का जाल बिछ रहा है। सिंगल को डबल और डबल को फोरलेन व सिक्‍सलेन में तब्‍दील किया जा चुका है लेकिन सड़क दुर्घटनाएं हैं कि रुकने का नाम नहीं ले रहीं। रुकना तो दूर, कम भी नहीं हो रहीं क्‍योंकि मौत का खेल खेलने वाले भी उसी अनुपात में बढ़ते जा रहे हैं।

तेज रफ्तार वाहनों से सड़क नापने वालों को न अपने जीवन की कोई चिंता है, न दूसरों के जीवन की। उनके लिए जान लेना और जान देना एक 'फन' बन चुका है।

फिर क्‍यों न ऐसे लोगों के लिए भी कानून में आमूल चूल परिवर्तन किया जाए। क्‍यों न ऐसे लोगों के खिलाफ इतनी कठोर कार्यवाही की जाए कि वह सड़क पर खतरों का खेल करने से पहले दस मर्तबा सोचने पर मजबूर हों। 

क्‍योंकि यदि ऐसा नहीं किया जाएगा तो सड़कें मौत के कुएं में तब्‍दील हो जाएंगी और मौत का यह खेल न सिर्फ वाहन चालकों के लिए बल्‍कि पैदल चलने वालों पर भी भारी पड़ता रहेगा।

-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी 

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