11 जून को ही पैदा हुए थे स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल
राम प्रसाद बिस्मिल प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे जो ऐतिहासिक काकोरी कांड में शामिल थे। उनका जन्म 11 जून 1897 को शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। उनके पिता मुरलीधर शाहजहांपुर नगरपालिका में कार्यरत थे। उन्होंने अपने पिता से हिंदी सीखी और उर्दू की तालीम एक मौलवी से हासिल की।आइये आज उनके जन्मदिन के अवसर पर उनसे जुड़ीं कुछ रोचक बातें जानते हैं…
सरफरोशी की तमन्ना
राम प्रसाद बिस्मिल बड़े कवि और शायर भी थे। उन्होंने उर्दू और हिंदी में अज्ञात, राम और बिस्मिल नाम से कविताएं लिखीं लेकिन वे प्रसिद्ध बिस्मिल कलमी नाम से हुए। सरफरोशी की तमन्ना जैसे अमर गीत को उन्होंने ही लिखा था जिसने हर भारतीय के दिल में जगह बनाई। उन्होंने हिंदी से बंगाली में अनुवाद का काम भी किया। उनकी द्वारा किए गए काम में बोल्शेविक प्रोग्राम, अ सैली ऑफ द माइंड, स्वदेशी रंग और कैथरीन शामिल है। ऋषि अरबिंदो की योगिक साधना का राम प्रसाद ने अनुवाद किया था। उनके सभी काम को ‘सुशील मेला’ नाम की सीरीज में प्रकाशित किया गया है।
आर्य समाज से जुड़ाव
वह आर्य समाज से जुड़े थे, जहां उनको सत्यार्थ प्रकाश नाम की किताब से प्रेरणा मिली। सत्यार्थ प्रकाश को स्वामी दयानंद सरस्वती ने लिखा था। अपने गुरु और आर्य समाज के प्रचारक स्वामी सोमदेव के माध्यम से उनका लाला हरदयाल से भी संपर्क हुआ। वह हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन नाम के क्रांतिकारी संगठन के संस्थापक सदस्य थे।
उनके नाम पर रेलवे स्टेशन
उत्तर रेलवे ने एक स्टेशन का नाम उनके सम्मान में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल रेलवे स्टेशन रखा। 19 दिसंबर 1997 को भारत सरकार द्वारा उनकी 100वीं जयंती के उपलक्ष्य में एक यादगार डाक टिकट जारी किया गया था।
काकोरी कांड
राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में 10 लोगों ने सुनियोजित कार्यवाही के तहत 9 अगस्त 1925 को लखनऊ के काकोरी नामक स्थान पर देशभक्तों ने रेल विभाग की ले जाई जा रही संग्रहित धनराशि को लूटा। उन्होंने ट्रेन के गार्ड को बंदूक की नोक पर काबू कर लिया। गार्ड के डिब्बे में लोहे की तिजोरी को तोड़कर आक्रमणकारी दल चार हजार रुपये लेकर फरार हो गए। काकोरी कांड में अशफाक उल्लाह, चन्द्रशेखर आजाद, राजेन्द्र लाहिड़ी, सचीन्द्र सान्याल, मन्मथनाथ गुप्त, राम प्रसाद बिस्मिल आदि शामिल थे।
गिरफ्तारी और मुकदमा
काकोरी कांड ने ब्रिटिश शासन को हिलाकर रख दिया था। काकोरी कांड के क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करवाने में मदद के लिए ब्रिटिश सरकार ने इनाम का ऐलान किया था। प्रमुख स्थानों पर इश्तिहार लगा दिए गए थे। क्रांतिकारियों तक ब्रिटिश पुलिस को पहुंचाने में बड़ी भूमिका घटना स्थल पर मिली चादर ने निभाया। चादर पर लगे धोबी के निशान से पता चल गया कि चादर बिस्मिल के साथी बनारसी लाल की थी। इस तरह से पुलिस यह पता लगाने में सफल रही कि काकोरी कांड में कौन-कौन लोग शामिल थे। फिर क्रांतिकारियों की बड़े पैमाने पर गिरफ्तारी की गई और मुकदमा चला गया। बिस्मिल को काकोरी कांड के लिए फांसी की सजा सुनाई गई और 19 दिसंबर 1927 को उनको फांसी दी गई।
जेल से लिखे खत
जेल रेकॉर्ड्स के मुताबिक बिस्मिल ने गोरखपुर जेल से कई पत्र लिखे। फांसी से तीन दिनों पहले उन्होंने अपनी मां और दोस्त अशफाकउल्लाह खान को पत्र लिखे। अपनी मां को लिखे पत्र में अपनी फांसी को लेकर दिलासा दिया था। उन्होंने मां से अफसोस नहीं करने को कहा था। उन्होंने लिखा था कि पूरा देश उनको याद करेगा। उन्होंने मां से प्रार्थना करने को कहा ताकि वह अपना जीवन अपनी मातृभूमि के लिए न्योछावर कर सकें। अशफाकउल्लाह खान को लिखे पत्र में उन्होंने उनको अपना ‘भाई’ और ‘लेफ्टिनेंट’ बताया था। उन्होंने अशफाक को लिखे पत्र को इस शेर के साथ खत्म किया, ‘असगर रहीम इश्क में हस्ती ही जुर्म है, रखना कभी न पांव यहां सर लिए हुए।’
अंतिम इच्छा
फांसी देने से पहले जब उनकी अंतिम इच्छा पूछी गई तो उन्होंने कहा कि मैं ब्रिटिश शासन का अंत देखना चाहता हूं। उसके बाद उन्होंने वैदिक मंत्र का जाप किया और फांसी के फंदे पर झूल गए।
-एजेंसी