पूंजीवादी अमेरिका ने पैसे पर उसूल को तरजीह दी: कल्ला
नई दिल्ली। अमेरिका ने अपने राष्ट्रपति चुनाव में पैसे के बजाय उन मूल्यों और उसूलों का चुनाव किया, जिनकी बदौलत दुनिया में उसके लोकतंत्र की खास पहचान है । यह कहा ‘अमेरिका 2020 : एक बँटा हुआ देश’ किताब के लेखक अविनाश कल्ला ने ।
कल्ला राजकमल प्रकाशन समूह की ओर से फेसबुक लाइव में वरिष्ठ पत्रकार संजय पुगलिया से बातचीत कर रहे थे. अमेरिका में चुनाव के दौरान उसके अनेक राज्यों का दौरा कर अमेरिकी सियासत और समाज का आँखों देखा हाल अपनी किताब में दर्ज किया है. इसमें उन्होंने बताया है कि दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र अमेरिका सिर्फ वही नहीं है, जैसा मीडिया में दिखाया जाता है। ऐसा बहुत कुछ है जो दुनिया के सबसे विकसित, अमीर और ताकतवर देश की उसकी बहुप्रचारित छवि से मेल नहीं खाता।
पुगलिया के एक सवाल पर कल्ला ने कहा, अमेरिका में मुझे लोगों से यह सुनने को मिला कि वे अमेरिकियों पर विश्वास नहीं करते. यह अविश्वास 6 जनवरी को कैपिटल पर हमले के साथ बिलकुल जाहिर हो गया. अमेरिकी लोगों ने अपनी ही संसद पर हमला कर दिया. कल्ला ने कहा, इसी कारण मैंने अपनी किताब के शीर्षक में अमेरिका को एक बंटा हुआ देश लिखा. मैं अमेरिकी जनमानस के विभाजन को दिखाना चाहता था. इसको इससे भी समझा जा सकता है कि वाशिंगटन में जितने फौजी हैं उतने तो अफगानिस्तान में नहीं होंगे ।
उन्होंने कहा, लेकिन अमेरिका ने आखिरकार अपने उसूलों के साथ खड़ा होना चुना. अमेरिका की अपनी चुनाव यात्रा के दौरान बहुत से लोगों ने ट्रंप की आर्थिक पहलों की तारीफ की थी, पर जो बाइडन की जीत से स्पष्ट हो गया कि पूंजीवादी अमेरिका ने पैसे के बजाय उसूल को चुना ।
कल्ला ने कहा कि अमेरिकी लोकतंत्र से जो चीज सीखी जा सकती है, वह यह कि वहाँ एक पत्रकार राष्ट्रपति के सामने खड़े होकर उससे कह सकता है कि आप झूठ बोल रहे हैं. और उसे शासन फिर भी नहीं रोकता ।
‘अमेरिका 2020 : एक बँटा हुआ देश’ कल्ला की पहली किताब है. जिसे राजकमल प्रकाशन समूह के उपक्रम सार्थक ने प्रकाशित किया है. कल्ला ने इसका लेखन करने से पहले अमेरिकी चुनाव के दौरान वहां सड़क मार्ग से तकरीबन 18 हजार किलोमीटर की सड़क मार्ग से यात्रा की. इस तरह उन्होंने वहाँ की सियासत के विभिन्न पहलुओं के साथ साथ आम अमेरिकी लोगों के जीवन-संघर्ष को भी बारीकी से उकेरा है।
कल्ला ने कहा, हमारे सामने अमेरिका की एक चमकती छवि है। हम उसे सुपर पॉवर और सबसे अमीर देश के रूप में जानते हैं। इस रूप में वह भारत समेत तमाम देशों के लोगों के लिए संभावनाओं का देश है, जहाँ पहुँचकर आप अपने सपनों को सच कर सकते हैं। लेिकन यह सिक्के का महज एक पहलू है। राष्ट्रपति चुनाव के दौरान अमेरिका के विभिन्न राज्यों में घूम-घूमकर मैंने जो कुछ देखा, उससे उसकी अलग ही छवि उभरी, जिसे मैंने इस किताब में रखा है।
यह किताब बतलाती है कि व्यापक नागरिक हितों से जुड़े मुद्दों पर व्यावहारिक कदम उठाने के बजाय सियासत का हथियार बनाकर उससे किनारा कर लेने का हुनर अमेरिकी राजनेता भी अच्छे से जानते हैं। ऐसा न होता तो कोविड-19 महामारी वहाँ स्वास्थ्य का मसला बनने की जगह राजनीतिक मुद्दा बनकर न रह जाती. किताब से यह भी पता चलता है कि भारत की तरह अमेरिका में भी ज्यादातर किसान, छात्र, पेंशनर आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
कल्ला कहते हैं, मैंने जो देखा, अनुभव किया, वही लिखा है। अमेरिका की हकीकत उसके बारे में हमारी कल्पनाओं को ध्वस्त करती है।
इस किताब से पता चलता है कि इस बार के राष्ट्रपति चुनाव ने रंगभेद, सार्वजनिक स्वास्थ्य, रोजगार, राष्ट्रवाद जैसे अनेक मुद्दों पर अमेरिकी जनमानस में मौजूद विभाजन को सतह पर ला दिया. इसके साथ ही यह अमेरिकी लोकतंत्र की शक्ति को भी रेखांकित करती है, जब निरंकुशता के रास्ते पर बढ़ने की प्रयास कर रहे राष्ट्रपति को सत्ता से बाहर कर दिया गया।
लेखक अविनाश कल्ला के बारे में
अविनाश कल्ला का जन्म 1 मार्च, 1979 को जोधपुर, राजस्थान में हुआ। इन्होंने सिविल इंजीनियरिंग और एमबीए की पढ़ाई के बाद दस वर्षों तक पत्रकारिता की। उसके बाद यूनिवर्सिटी ऑफ़ वेस्टमिन्स्टर, लन्दन से पत्रकारिता में एम.ए. किया। द टाइम्स ऑफ़ इंडिया, मेल टुडे, द हिन्दू, द ट्रिब्यून, डेक्कन हेराल्ड, राजस्थान पत्रिका और गल्फ़ न्यूज़ आदि में प्रकाशित होते रहे अविनाश पत्रकारिता के अनूठे अन्तरराष्ट्रीय आयोजन ‘टॉक जर्नलिज़्म’ (जयपुर) के संस्थापक हैं। सिनेमा और क्रिकेट देखने, यात्रा करने और लोगों से मिलने-जुलने में इनकी गहरी दिलचस्पी है।
अमेरिका 2020 : एक बँटा हुआ देश इनकी पहली किताब है।
– Legend News